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''कवि: [[ द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ]]''{{KKGlobal}}[[ Category:कविताएँ ]]{{KKRachna[[ Category:|रचनाकार=द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ]]}}{{KKCatKavita}}{{KKPrasiddhRachna}}<poem>वीर तुम बढ़े चलो! धीर तुम बढ़े चलो!
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~   वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो ! हाथ में ध्वजा रहे बाल दल सजा रहे ध्वज कभी झुके नहीं दल कभी स्र्के रुके नहीं वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
सामने पहाड़ हो सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर डरो नहीं तुम निडर डटो वहीं
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
प्रात हो कि रात हो संग हो न साथ हो
सूर्य से बढे बढ़े चलो चन्द्र से बढे बढ़े चलोवीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
एक ध्वज लिये हुए एक प्रण किये हुए
मातृ भूमि के लिये पितृ भूमि के लिये
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !
अन्न भूमि में भरा वारि भूमि में भरा
यत्न कर निकाल लो रत्न भर निकाल लो
वीर तुम बढ़े चलो ! धीर तुम बढ़े चलो !-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी</poem>
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