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"हे प्रभो आनन्ददाता ज्ञान हमको दीजिए / रामनरेश त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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− | हे प्रभो आनन्द दाता ज्ञान हमको | + | हे प्रभो! आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए। |
− | शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे | + | शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए। |
− | लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी | + | लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें। |
− | ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर | + | ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रत-धारी बनें॥ |
प्रार्थना की उपर्युक्त चार पंक्तियाँ ही देश के कोने-कोने में गायी जाती हैं। लेकिन सच तो ये है कि माननीय त्रिपाठी जी ने इस प्रार्थना को छह पंक्तियों में लिखा था। जिसकी आगे की दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं : | प्रार्थना की उपर्युक्त चार पंक्तियाँ ही देश के कोने-कोने में गायी जाती हैं। लेकिन सच तो ये है कि माननीय त्रिपाठी जी ने इस प्रार्थना को छह पंक्तियों में लिखा था। जिसकी आगे की दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं : |
15:31, 7 दिसम्बर 2011 का अवतरण
हे प्रभो! आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।
लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रत-धारी बनें॥
प्रार्थना की उपर्युक्त चार पंक्तियाँ ही देश के कोने-कोने में गायी जाती हैं। लेकिन सच तो ये है कि माननीय त्रिपाठी जी ने इस प्रार्थना को छह पंक्तियों में लिखा था। जिसकी आगे की दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं :
गत हमारी आयु हो प्रभु! लोक के उपकार में
हाथ डालें हम कभी क्यों भूलकर अपकार में