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"कहानी / रामनरेश त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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18:08, 7 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

आँख मूँदिए तो निज घर की मिलेगी राह
आँख खोलते ही जग स्वप्न है विरह का।
मन खोइए तो कुछ पाइए अनोखा धन
हानि में है लाभ यह अजब तरह का॥
आँख लगते ही फिर आँख लगती ही नहीं
सुख है विचित्र इस घर के कलह का।
काल की कही हुई कहानी है जगत यह
मनुज इसी में रहता है नित बहका॥