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"वह भी आदमी है / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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इक ग़रीबी के सिवा इस आदमी में क्या कमी है ?
 
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20:12, 14 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

कोलकाता में एक रिक्शा-पुलर को देखकर

अब यहाँ से तीर-सी आवाज़ देना लाज़मी है
ढो रहा है जो आदमी की देह, वह भी आदमी है

पेट पाँवों को भगाता है
मगर क्या इस तरह से
है नहीं मंज़ूर, देखूँ
आदमी को इस सतह से

इक ग़रीबी के सिवा इस आदमी में क्या कमी है ?

भेद यह बोया गया है
महल की चालाकियों से
और फैलाया गया, कुछ
पालतू बैसाखियों से

इसलिए ईमान की असहाय आँखों में नमी है