"जिस पल तेरी याद सताए / भारत भूषण" के अवतरणों में अंतर
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+ | जिस पल तेरी याद सताए, आधी रात नींद जग जाये | ||
+ | ओ पाहन! इतना बतला दे उस पल किसकी बाहँ गहूँ मै | ||
अपने अपने चाँद भुजाओं | अपने अपने चाँद भुजाओं | ||
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सारी सारी रात अकेला | सारी सारी रात अकेला | ||
मैं रोऊँ या शबनम रोये | मैं रोऊँ या शबनम रोये | ||
− | करवट में दहकें अंगारे , नभ से चंदा ताना मारे | + | करवट में दहकें अंगारे, नभ से चंदा ताना मारे |
− | प्यासे अरमानों को मन में दाबे कैसे मौन | + | प्यासे अरमानों को मन में दाबे कैसे मौन रहूँ मैं |
गाऊँ कैसा गीत की जिससे | गाऊँ कैसा गीत की जिससे | ||
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जाऊँ किसके द्वार जहाँ ये | जाऊँ किसके द्वार जहाँ ये | ||
अपना दुखिया मन बहलाऊँ | अपना दुखिया मन बहलाऊँ | ||
− | गली गली डोलूँ बौराया | + | गली गली डोलूँ बौराया, बैरिन हुई स्वयं की छाया |
मिला नहीं कोई भी ऐसा जिससे अपनी पीर कहूं मैं | मिला नहीं कोई भी ऐसा जिससे अपनी पीर कहूं मैं | ||
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घर घर में खिल रही चाँदनी | घर घर में खिल रही चाँदनी | ||
मेरे आँगन धूप जगी है | मेरे आँगन धूप जगी है | ||
− | सुधियाँ नागन सी लिपटी हैं, | + | सुधियाँ नागन सी लिपटी हैं, आँसू आँसू में सिमटी हैं |
छोटे से जीवन में कितना दर्द-दाह अब और सहूँ मैं | छोटे से जीवन में कितना दर्द-दाह अब और सहूँ मैं | ||
पंक्ति 27: | पंक्ति 33: | ||
अब न जिया जाता निर्मोही | अब न जिया जाता निर्मोही | ||
गम की जलन भरी छाया में | गम की जलन भरी छाया में | ||
− | बिजली ने ज्यों फूल छुआ है, | + | बिजली ने ज्यों फूल छुआ है, ऐसा मेरा हृदय हुआ है |
− | पता नहीं क्या क्या कहता हूँ , अपने बस में आज न हूँ मैं | + | पता नहीं क्या क्या कहता हूँ, अपने बस में आज न हूँ मैं |
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14:03, 18 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
जिस पल तेरी याद सताए, आधी रात नींद जग जाये
ओ पाहन! इतना बतला दे उस पल किसकी बाहँ गहूँ मै
अपने अपने चाँद भुजाओं
में भर भर कर दुनिया सोये
सारी सारी रात अकेला
मैं रोऊँ या शबनम रोये
करवट में दहकें अंगारे, नभ से चंदा ताना मारे
प्यासे अरमानों को मन में दाबे कैसे मौन रहूँ मैं
गाऊँ कैसा गीत की जिससे
तेरा पत्थर मन पिघलाऊँ
जाऊँ किसके द्वार जहाँ ये
अपना दुखिया मन बहलाऊँ
गली गली डोलूँ बौराया, बैरिन हुई स्वयं की छाया
मिला नहीं कोई भी ऐसा जिससे अपनी पीर कहूं मैं
टूट गया जिससे मन दर्पण
किस रूपा की नजर लगी है
घर घर में खिल रही चाँदनी
मेरे आँगन धूप जगी है
सुधियाँ नागन सी लिपटी हैं, आँसू आँसू में सिमटी हैं
छोटे से जीवन में कितना दर्द-दाह अब और सहूँ मैं
फटा पड़ रहा है मन मेरा
पिघली आग बही काया में
अब न जिया जाता निर्मोही
गम की जलन भरी छाया में
बिजली ने ज्यों फूल छुआ है, ऐसा मेरा हृदय हुआ है
पता नहीं क्या क्या कहता हूँ, अपने बस में आज न हूँ मैं