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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=भारत भूषण }}{{KKCatGeet}}<poem>जिस पल तेरी याद सताए, आधी रात नींद जग जायेओ पाहन ! इतना बतला दे उस पल किसकी बाहँ गहूँ मै
अपने अपने चाँद भुजाओं
सारी सारी रात अकेला
मैं रोऊँ या शबनम रोये
करवट में दहकें अंगारे , नभ से चंदा ताना मारेप्यासे अरमानों को मन में दाबे कैसे मौन रहूँ मैं
गाऊँ कैसा गीत की जिससे
जाऊँ किसके द्वार जहाँ ये
अपना दुखिया मन बहलाऊँ
गली गली डोलूँ बौराया , बैरिन हुई स्वयं की छाया
मिला नहीं कोई भी ऐसा जिससे अपनी पीर कहूं मैं
घर घर में खिल रही चाँदनी
मेरे आँगन धूप जगी है
सुधियाँ नागन सी लिपटी हैं, आँसू आँसू में सिमटी हैं
छोटे से जीवन में कितना दर्द-दाह अब और सहूँ मैं
अब न जिया जाता निर्मोही
गम की जलन भरी छाया में
बिजली ने ज्यों फूल छुआ है, ऐसा मेरा हृदय हुआ हैपता नहीं क्या क्या कहता हूँ , अपने बस में आज न हूँ मैं रचना यहाँ टाइप करें</poem>
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