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"सोचा था / रमेश रंजक" के अवतरणों में अंतर

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जाने किन सिरफिरे अभावों में
 
जाने किन सिरफिरे अभावों में
 
रद्दी के भाव बिक गए हैं हम
 
रद्दी के भाव बिक गए हैं हम
                        बेमौसम ।
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                          बेमौसम ।
  
 
आए थे ताज़े अख़बार-से
 
आए थे ताज़े अख़बार-से
                    सवेरा था
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                  सवेरा था
 
धूप में नहाए तो बुढ़ियाये
 
धूप में नहाए तो बुढ़ियाये
 
निज-निर्मित कुण्ठ के घेरों से
 
निज-निर्मित कुण्ठ के घेरों से
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सोचा था तैर कर समुन्दर की
 
सोचा था तैर कर समुन्दर की
 
लहरों पर नाम लिख गए हैं हम  
 
लहरों पर नाम लिख गए हैं हम  
                            कितना भ्रम ।  
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                        कितना भ्रम ।  
 
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12:45, 19 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

जाने किन सिरफिरे अभावों में
रद्दी के भाव बिक गए हैं हम
                          बेमौसम ।

आए थे ताज़े अख़बार-से
                   सवेरा था
धूप में नहाए तो बुढ़ियाये
निज-निर्मित कुण्ठ के घेरों से
                           ऊबे तो
अपने अवमूल्यन पर पछताए

सोचा था तैर कर समुन्दर की
लहरों पर नाम लिख गए हैं हम
                         कितना भ्रम ।