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"ये सर्द मौसम ये शोख लम्‍हे / ओम निश्चल" के अवतरणों में अंतर

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ये सर्द मौसम,
 
ये सर्द मौसम,
 
 
ये शोख लम्‍हे
 
ये शोख लम्‍हे
 
 
फ़िजा में आती हुई सरसता,
 
फ़िजा में आती हुई सरसता,
 
 
खनक-भरी ये  हँसी कि जैसे
 
खनक-भरी ये  हँसी कि जैसे
 
 
क्षितिज  में चमके हों मेघ सहसा।
 
क्षितिज  में चमके हों मेघ सहसा।
 
 
   
 
   
 
 
हुलस के आते हवा के  झोंके
 
हुलस के आते हवा के  झोंके
 
 
धुऍं के फाहे रुई के धोखे
 
धुऍं के फाहे रुई के धोखे
 
 
कहीं पे सूरज बिलम गया है
 
कहीं पे सूरज बिलम गया है
 
 
कोई तो है, जो है राह रोके,
 
कोई तो है, जो है राह रोके,
 
 
किसी के चेहरे का ये भरम है
 
किसी के चेहरे का ये भरम है
 
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हो जैसे पत्‍तों में सूर्य अटका।
हो जैस पत्‍तों में सूर्य अटका।
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नई हवाओं की गुनगुनाहट
 
नई हवाओं की गुनगुनाहट
 
 
ये खुशबुओं की अटूट बारिश,
 
ये खुशबुओं की अटूट बारिश,
 
 
नए बरस की ये दस्‍तकें हैं
 
नए बरस की ये दस्‍तकें हैं
 
 
नए-से सपने नई-सी ख्‍वाहिश
 
नए-से सपने नई-सी ख्‍वाहिश
 
 
नया जनम ले रही है चाहत
 
नया जनम ले रही है चाहत
 
 
मचल रहे हैं दिल रफ्ता रफ्ता।
 
मचल रहे हैं दिल रफ्ता रफ्ता।
 
 
   
 
   
 
 
चलो कि टूटे हुओं को जोड़ें,
 
चलो कि टूटे हुओं को जोड़ें,
 
 
जमाने से रूठे हुओं को मोड़ें
 
जमाने से रूठे हुओं को मोड़ें
 
 
अँधेरे में इक दिया तो बालें
 
अँधेरे में इक दिया तो बालें
 
 
हम ऑंधियों का गूरूर तोड़ें,
 
हम ऑंधियों का गूरूर तोड़ें,
 
 
धरा पे लिख दें हवा से कह दें
 
धरा पे लिख दें हवा से कह दें
 
 
है मँहगी नफरत औ प्‍यार सस्‍ता।
 
है मँहगी नफरत औ प्‍यार सस्‍ता।
 
 
   
 
   
 
 
नए जमाने के ख्‍याल हैं हम
 
नए जमाने के ख्‍याल हैं हम
 
 
नए उजालों के मुंतजिर हम,
 
नए उजालों के मुंतजिर हम,
 
 
मगर मुहब्‍बत के राजपथ के
 
मगर मुहब्‍बत के राजपथ के
 
 
बड़े पुराने हैं हमसफर हम,
 
बड़े पुराने हैं हमसफर हम,
 
 
अभी भी मीलों है हमको चलना
 
अभी भी मीलों है हमको चलना
 
 
अभी भी बाकी है कितना रस्‍ता।
 
अभी भी बाकी है कितना रस्‍ता।
 
 
   
 
   
 
 
अपन फ़कीरी में पलने वाले
 
अपन फ़कीरी में पलने वाले
 
 
मगर हैं दिल में सुकून पाले
 
मगर हैं दिल में सुकून पाले
 
 
थके नहीं हैं हम इस सफर में
 
थके नहीं हैं हम इस सफर में
 
 
भले ही पॉवों में दिखते छाले,
 
भले ही पॉवों में दिखते छाले,
 
 
अभी उमीदें हैं अपनी रोशन
 
अभी उमीदें हैं अपनी रोशन
 
 
अभी है माटी में प्‍यार ज़िन्‍दा।
 
अभी है माटी में प्‍यार ज़िन्‍दा।
 
 
<Poem>
 
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12:22, 21 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

ये सर्द मौसम,
ये शोख लम्‍हे
फ़िजा में आती हुई सरसता,
खनक-भरी ये हँसी कि जैसे
क्षितिज में चमके हों मेघ सहसा।
 
हुलस के आते हवा के झोंके
धुऍं के फाहे रुई के धोखे
कहीं पे सूरज बिलम गया है
कोई तो है, जो है राह रोके,
किसी के चेहरे का ये भरम है
हो जैसे पत्‍तों में सूर्य अटका।
 
नई हवाओं की गुनगुनाहट
ये खुशबुओं की अटूट बारिश,
नए बरस की ये दस्‍तकें हैं
नए-से सपने नई-सी ख्‍वाहिश
नया जनम ले रही है चाहत
मचल रहे हैं दिल रफ्ता रफ्ता।
 
चलो कि टूटे हुओं को जोड़ें,
जमाने से रूठे हुओं को मोड़ें
अँधेरे में इक दिया तो बालें
हम ऑंधियों का गूरूर तोड़ें,
धरा पे लिख दें हवा से कह दें
है मँहगी नफरत औ प्‍यार सस्‍ता।
 
नए जमाने के ख्‍याल हैं हम
नए उजालों के मुंतजिर हम,
मगर मुहब्‍बत के राजपथ के
बड़े पुराने हैं हमसफर हम,
अभी भी मीलों है हमको चलना
अभी भी बाकी है कितना रस्‍ता।
 
अपन फ़कीरी में पलने वाले
मगर हैं दिल में सुकून पाले
थके नहीं हैं हम इस सफर में
भले ही पॉवों में दिखते छाले,
अभी उमीदें हैं अपनी रोशन
अभी है माटी में प्‍यार ज़िन्‍दा।