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"उगता राष्ट्र / जगन्नाथप्रसाद 'मिलिंद'" के अवतरणों में अंतर

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मेरे किशोर, मेरे कुमार!  
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अग्निस्फुलिंग, विद्युत् के कण, तुम तेज पुंज, तुम निर्विषाद,  
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तुम ज्वालागिरि के प्रखर स्रोत, तुम चकाचौंध, तुम वज्रनाद,  
 
तुम ज्वालागिरि के प्रखर स्रोत, तुम चकाचौंध, तुम वज्रनाद,  
तुम मदन-दहन दुर्धर्ष रुद्र के वह्निदीप्त दृग के प्रसाद,  
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तुम मदन-दहन दुर्धर्ष रुद्र के वह्निमान दृग के प्रसाद,  
तुम तप-त्रिशूल की तीक्ष्ण धार!  
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:तुम तप-त्रिशूल की तीक्ष्णधार!  
मेरे किशोर, मेरे कुमार!  
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तुम नवजाग्रत उत्साह, तीव्र उत्कंठा, उत्सुक अथक प्राण,  
 
तुम नवजाग्रत उत्साह, तीव्र उत्कंठा, उत्सुक अथक प्राण,  
तुम जिज्ञासा उद्दाम, विश्व-व्यापक बनने के अनुष्ठान,
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तुम जिज्ञासा उद्दाम, विश्व-व्यापक बनने के अनुष्ठान;
 
उच्छृंखल कौतूहल, जीवन के स्फुरण, शक्ति के नव-निधान,  
 
उच्छृंखल कौतूहल, जीवन के स्फुरण, शक्ति के नव-निधान,  
तुम चिर-अतृप्ति, अविरत सुधार।  
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:तुम चिर-अतृप्ति, अविरत सुधार।  
मेरे किशोर, मेरे कुमार!  
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::मेरे किशोर, मेरे कुमार!
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अक्षय संजीवन-प्रद मद से कर अंतर्तर भरपूर, शूर,
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तुम एक चरण में भय, चिंता, संदेह, शोक कर चूर-चूर;
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प्राणों की विप्लव-लहर विश्व में पहुंचा देते दूर-दूर!
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:तुम नवयुग के ऋषि, सूत्रधार।
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::मेरे किशोर, मेरे कुमार!
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उन्मत्त प्रलय की तन्मयता तुम, तांडव के उल्लास-हास,
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युग-परिवर्तन की आकांक्षा, उच्छृंखल सुख की तीव्र प्यास;
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तुम वन्य-कुसुम, तुम नग्न-प्रकृति की पावनता की मुग्ध-वास,
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:तुम आडंबर पर पद-प्रहार!
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::मेरे किशोर, मेरे कुमार!
  
अक्षय संजीवन-प्रद मद से कर अंतरतर भूरपूर, शूर,
 
तुम एक चरण में भय, चिंता, संदेह, शोक कर चूर-चूर,
 
प्राणों की विप्लव-लहर विश्व में पहुंचा देते दूर-दूर।
 
तुम नवयुग के ॠषि, सूत्रधार।
 
मेरे किशोर, मेरे कुमार!
 
 
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16:13, 21 दिसम्बर 2011 का अवतरण

मेरे किशोर, मेरे कुमार!
अग्निस्फुलिंग, विद्युत् के कण, तुम तेज पुंज, तुम निर्विषाद,
तुम ज्वालागिरि के प्रखर स्रोत, तुम चकाचौंध, तुम वज्रनाद,
तुम मदन-दहन दुर्धर्ष रुद्र के वह्निमान दृग के प्रसाद,
तुम तप-त्रिशूल की तीक्ष्णधार!
मेरे किशोर, मेरे कुमार!
तुम नवजाग्रत उत्साह, तीव्र उत्कंठा, उत्सुक अथक प्राण,
तुम जिज्ञासा उद्दाम, विश्व-व्यापक बनने के अनुष्ठान;
उच्छृंखल कौतूहल, जीवन के स्फुरण, शक्ति के नव-निधान,
तुम चिर-अतृप्ति, अविरत सुधार।
मेरे किशोर, मेरे कुमार!
अक्षय संजीवन-प्रद मद से कर अंतर्तर भरपूर, शूर,
तुम एक चरण में भय, चिंता, संदेह, शोक कर चूर-चूर;
प्राणों की विप्लव-लहर विश्व में पहुंचा देते दूर-दूर!
तुम नवयुग के ऋषि, सूत्रधार।
मेरे किशोर, मेरे कुमार!
उन्मत्त प्रलय की तन्मयता तुम, तांडव के उल्लास-हास,
युग-परिवर्तन की आकांक्षा, उच्छृंखल सुख की तीव्र प्यास;
तुम वन्य-कुसुम, तुम नग्न-प्रकृति की पावनता की मुग्ध-वास,
तुम आडंबर पर पद-प्रहार!
मेरे किशोर, मेरे कुमार!