भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
:तुम सुनते पीड़ित की पुकार!
::मेरे किशोर, मेरे कुमार!
चल रहे, सींच आशा शोणित से, चरम लक्ष्य अपना पाने,कितने दुर्गम पथ पार किए, कितने वन-पर्वत हैं छाने!तुम हठी भगीरथ, नवयुग की गंगा के पीछे दीवाने!:इस तप पर जीवन रहे वार!::मेरे किशोर, मेरे कुमार!रे ‘प्रह्लाद’! दमन-ज्वाला में मंदस्मित बिखराते हो!रे ‘ध्रुव’! बाधा चीर इष्ट पथ पर बढ़ते ही जाते हो!रे ‘शुक’! प्रबल प्रलोभन में तुम अविचल धैर्य दिखाते हो!:तुम तप्त स्वर्ण, तुम निर्विकार!::मेरे किशोर, मेरे कुमार!जिसके सम्मुख आ छिन्न-भिन्न हों क्षण में युग-युग के बंधन,बह जाएँ अमित साम्राज्य प्रबल, ढह जाएँ समुन्नत स्वर्ण भवन;गौरव-सिंहासन, गर्व-मुकुट भू-लुंठित हों बनकर रजकण,:वह संघ-शक्ति तुम दुर्निवार!::मेरे किशोर, मेरे कुमार!उत्थान-पतन से पूर्ण बने, हो सुखकर अपनी राह तुम्हें,तुम सैनिक, हो न श्रांत कुटिया में टिक रहने की चाह तुम्हें!हर असफलता से मिले नई प्रेरणा, नया उत्साह तुम्हें,:तुम रण-सज्जित हो बार-बार!::मेरे किशोर, मेरे कुमार!क्या चिंता? दृष्टि उपेक्षा की डालें तुम पर ज्ञानी-ध्यानी!केवल रणभेरी याद रखे, भूले न समर का सेनानी!सौतेली माँ हो शांति भले ही, सुख मृगतृष्णा का पानी!:दें संधि-पत्र तुमको बिसार!::मेरे किशोर, मेरे कुमार!
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits