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भीतर जागा दाता / अज्ञेय

No change in size, 21:23, 21 दिसम्बर 2011
सरसों पाली के स्थान पर पीली
आकाश के भाल पर जय-तिलक आँक गयी।
गेहूँ की हरी बालियों में से
कभी राई की उजली, कभी सरसों की पाली पीली फूल-ज्योत्स्ना दिप गयी,
कभी लाली पोस्ते की सहसा चौंका गयी-
कभी लघु नीलिमा तीसी की चमकी और छिप गयी।
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