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अभिमत/कवर टिप्पणी
मौलाना हारून ’अना’ क़ासमी ऐसे नौजवान ग़ज़ल के शायर हैें जिनके फ़िक्रो फ़न
में इनकी सच्ची रियाज़त, वसीअ़ मुतालअ़ा,
और शायराना सदाक़त हैं।
इनके अच्छे शेरांे में ग़ज़ल की सदियों की परम्पराएं अपने ज़माने से बड़े प्यार से गले मिल रही हैं। इन रिवायतों में नया लबो-लहज़ा इनकी अपनी पहचान बनाने में पूरी तरह कामयाब हो रहा है। इनके कुछ अच्छे शेर सुबह की धूप में मुस्कुराते फूलों की तरह उजले-उजले हैं।
मुझे यक़ीन है कि हमारे हिन्दी के नौजवान दोस्त भी इस मजमूए को ज़रूर पसन्द करेंगे।
' डॉ.बशीर बद्र'