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"हर दरीचे में मेरे क़त्ल का मंज़र होगा / मख़्मूर सईदी" के अवतरणों में अंतर

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00:58, 31 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

हर दरीचे में मेरे क़त्ल का मंज़र होगा
शाम होगी तो तमाशा यही घर-घर होगा

पल की दहलीज प’ गिर जाऊँगा बेसुध होकर
बोझ सदियों की थकन का मेरे सर पर होगा

मैं भी इस जिस्म हूँ साया तो नहीं हूँ तेरा
क्यों तेरे हिज़्र में जीना मुझे दूभर होगा

अपनी ही आँच में पिघला हुआ चाँदी का बदन
सरहद-ए-लम्स तक आते हुए पत्थर होगा

लोग इस तरह तो शक्लें न बदलते होंगे
आईना अब उसे देखेगा तो शशदर होगा

सर पटकते हैं बगुले वही मौजों की तरह
अब जो सहरा है किसी दिन ये समंदर होगा

दश्ते-तदबीर में जो ख़ाक-ब-सर है ‘मख़्मूर’
हो न हो मेरा ही आवारा मुक़द्दर होगा