भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बुलावा / मख़्मूर सईदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मख़्मूर सईदी }} {{KKCatNazm}} <poem> ज़रा ठहरो ! क...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:15, 31 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण
ज़रा ठहरो ! किधर हम जा रहे हैं
उधर उस चारदीवारी के पीछे
वो बूढ़ा गोरकन चिल्ला रहा है :
‘इधर आओ ! क़दम जल्दी बढ़ाओ
यहाँ इस चारदीवारी के अंदर
जनम दिन से तुम्हारी मुंतज़िर हैं
वो क़ब्रें, जिन की पेशानी प’ अब तक
किसी के नाम का कत्बा नहीं है