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"बुलावा / मख़्मूर सईदी" के अवतरणों में अंतर

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01:15, 31 दिसम्बर 2011 के समय का अवतरण

ज़रा ठहरो ! किधर हम जा रहे हैं
उधर उस चारदीवारी के पीछे
वो बूढ़ा गोरकन चिल्ला रहा है :

‘इधर आओ ! क़दम जल्दी बढ़ाओ
यहाँ इस चारदीवारी के अंदर
जनम दिन से तुम्हारी मुंतज़िर हैं
वो क़ब्रें, जिन की पेशानी प’ अब तक
किसी के नाम का कत्बा नहीं है