"शिमला का तापमान / अजेय" के अवतरणों में अंतर
('<poem>( सामान्य से दस डिग्री उपर) '''+10<sup></sup>c''' भीड़ कभी छितरा...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | <poem>( सामान्य से दस डिग्री | + | {{KKGlobal}} |
+ | {{KKRachna | ||
+ | |रचनाकार=अजेय | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | ( सामान्य से दस डिग्री ऊपर) | ||
'''+10<sup></sup>c''' | '''+10<sup></sup>c''' | ||
पंक्ति 8: | पंक्ति 15: | ||
स्पष्ट होते हैं | स्पष्ट होते हैं | ||
बिखर कर बदल जाते हैं | बिखर कर बदल जाते हैं | ||
− | कभी नीली जीन्स की नदी सी एक | + | कभी नीली जीन्स की नदी-सी एक |
− | दूर नगर निगम के | + | दूर नगर निगम के दफ़्तर तक चली जाती है |
पतली और पतली होती | पतली और पतली होती | ||
− | जल पक्षियों से, डूबते, उतराते हैं | + | जल-पक्षियों से, डूबते, उतराते हैं |
− | उस पर रंग बिरंगी टी-शर्ट्स और | + | उस पर रंग बिरंगी टी-शर्ट्स और टोपियाँ |
धूप सीधी सर पर है एकदम कड़़क | धूप सीधी सर पर है एकदम कड़़क | ||
और तापमान बढ़ा हुआ | और तापमान बढ़ा हुआ | ||
पंक्ति 23: | पंक्ति 30: | ||
मेरे पास आकर रोता है - | मेरे पास आकर रोता है - | ||
‘अंकल ले लो न, कोई भी नहीं ले रहा’’ | ‘अंकल ले लो न, कोई भी नहीं ले रहा’’ | ||
− | उसकी | + | उसकी आँखें प्रोफेशनल हैं |
− | फिर भी भीतर कुछ काँप सा जाता है | + | फिर भी भीतर कुछ काँप-सा जाता है |
तापमान पहले से बढ़ गया है | तापमान पहले से बढ़ गया है | ||
'''+30c''' | '''+30c''' | ||
प्लास्टिक का हेलीकॅाप्टर | प्लास्टिक का हेलीकॅाप्टर | ||
− | रह रह कर मेरे पास तक उड़ा चला आता है | + | रह-रह कर मेरे पास तक उड़ा चला आता है |
− | लौट कर लड़खड़ाता | + | लौट कर लड़खड़ाता लैन्ड करता है |
− | रेलिंग पर बैठा बड़ा सा बन्दर | + | रेलिंग पर बैठा बड़ा-सा बन्दर |
− | दो लड़कियों की चुन्नी पकड़ता, | + | दो लड़कियों की चुन्नी पकड़ता, मुँह बनाता, डराता है |
लड़कियाँ | लड़कियाँ | ||
एक सुन्दर, गोरी, लाल-लाल गालों वाली | एक सुन्दर, गोरी, लाल-लाल गालों वाली | ||
− | दूसरी साधारण, | + | दूसरी साधारण, साँवली |
प्रतिवाद नहीं करतीं | प्रतिवाद नहीं करतीं | ||
शर्म से केवल मुह छिपातीं, मुस्करातीं हैं | शर्म से केवल मुह छिपातीं, मुस्करातीं हैं | ||
पंक्ति 42: | पंक्ति 49: | ||
'''+40c''' | '''+40c''' | ||
− | इक्के दुक्के घोड़े वाले ठक-ठक किनारे किनारे दौड़ रहे हैं | + | इक्के-दुक्के घोड़े वाले ठक-ठक किनारे-किनारे दौड़ रहे हैं |
घोड़े वालों की चप्पलों की चट-चट | घोड़े वालों की चप्पलों की चट-चट | ||
घोड़े की टापों में घुल मिल रही है | घोड़े की टापों में घुल मिल रही है | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 57: | ||
दोनों की चुंधियाई आँखों में आँसू हैं | दोनों की चुंधियाई आँखों में आँसू हैं | ||
गाढ़े सनग्लास पहने सैलानी स्वर्ग में उड़ रहा है | गाढ़े सनग्लास पहने सैलानी स्वर्ग में उड़ रहा है | ||
− | बड़े से छतनार | + | बड़े से छतनार दरख़्त के नीचे |
− | + | आई० जी० एम० सी० में इलाज करवाने आए देहाती मरीज़ सुस्ता रहे हैं | |
बेकार पड़े घोड़े भी निश्चिन्त, पसरे हैं | बेकार पड़े घोड़े भी निश्चिन्त, पसरे हैं | ||
लेकिन घोड़े वाले परेशान, दाढ़ी खुजला रहे हैं | लेकिन घोड़े वाले परेशान, दाढ़ी खुजला रहे हैं | ||
पंक्ति 62: | पंक्ति 69: | ||
'''+50c''' | '''+50c''' | ||
उस बड़े बन्दर को दो युवक | उस बड़े बन्दर को दो युवक | ||
− | (एक चंट / दूसरा साधारण ढीला ढाला सा) | + | (एक चंट / दूसरा साधारण ढीला-ढाला-सा) |
चॅाकलेट खिला रहे हैं | चॅाकलेट खिला रहे हैं | ||
वह बन्दर उनके साथ गुस्ताखी नहीं करता | वह बन्दर उनके साथ गुस्ताखी नहीं करता | ||
− | वे लोग बातें कर रहे हैं खुसर फुसर | + | वे लोग बातें कर रहे हैं खुसर-फुसर |
युवक ‘पंजाबी’ में | युवक ‘पंजाबी’ में | ||
बंदर ‘बंदारी’ में | बंदर ‘बंदारी’ में | ||
क्या फर्क पड़ता है | क्या फर्क पड़ता है | ||
− | + | ‘दोस्ती’ की एक ही भाषा होती है | |
− | उनकी आपस में पट रही है / जोड़ तोड़ चल रहा है | + | उनकी आपस में पट रही है / जोड़-तोड़ चल रहा है |
तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है | तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है | ||
− | +60c हिजड़े और बहरूपिए मचक-मचक कर चल रहे हैं | + | +60c |
− | उन के ढोली गले में रूमाल | + | हिजड़े और बहरूपिए मचक-मचक कर चल रहे हैं |
+ | उन के ढोली गले में रूमाल बाँधे | ||
अदब से, झुक कर उन के पीछे जा रहे हैं | अदब से, झुक कर उन के पीछे जा रहे हैं | ||
पान चबाते होंठों में लम्बी-लम्बी विदेशी सिग्रेटें दबाए | पान चबाते होंठों में लम्बी-लम्बी विदेशी सिग्रेटें दबाए | ||
पंक्ति 82: | पंक्ति 90: | ||
उसके अनेक पेट हैं | उसके अनेक पेट हैं | ||
और हर पेट में एक भूखा बच्चा | और हर पेट में एक भूखा बच्चा | ||
− | संभ्रांत सा दिखने वाला एक अधेड़ | + | संभ्रांत-सा दिखने वाला एक अधेड़ |
काला लबादा ओढ़, तेल की कटोरी हाथ में लिए | काला लबादा ओढ़, तेल की कटोरी हाथ में लिए | ||
फ्रेंडशिप बैंड वाली तिब्बती लड़की के बगल में बैठ गया है | फ्रेंडशिप बैंड वाली तिब्बती लड़की के बगल में बैठ गया है | ||
पंक्ति 88: | पंक्ति 96: | ||
गेयटी के सामने से एक महिला गुज़र गई है | गेयटी के सामने से एक महिला गुज़र गई है | ||
− | उसके | + | उसके सफ़ेद हो रहे बाल मर्दाना ढंग से कटे हैं |
कानों में बड़ी-बड़ी बालियाँ और गले में खूब चमकदार मनके | कानों में बड़ी-बड़ी बालियाँ और गले में खूब चमकदार मनके | ||
उसकी नज़रें एक निश्चित ऊँचाई पर स्थिर हैं | उसकी नज़रें एक निश्चित ऊँचाई पर स्थिर हैं | ||
पंक्ति 95: | पंक्ति 103: | ||
तापमान काफी बढ़ गया है | तापमान काफी बढ़ गया है | ||
− | +70c | + | +70c |
+ | फोटो खिंचवाते हैं | ||
कभी-कभी किसी-किसी का कैमरा | कभी-कभी किसी-किसी का कैमरा | ||
क्लिक नहीं करता | क्लिक नहीं करता | ||
− | चाहे कितना भी उलट पलट कर देखो | + | चाहे कितना भी उलट-पलट कर देखो |
कभी-कभी कुछ जोड़े | कभी-कभी कुछ जोड़े | ||
बिल्कुल क्लिक नहीं करते | बिल्कुल क्लिक नहीं करते | ||
पंक्ति 110: | पंक्ति 119: | ||
तापमान एकदम बढ़ गया है । | तापमान एकदम बढ़ गया है । | ||
− | +80c | + | +80c |
− | लड़कियों के पास पंजाबी युवक | + | |
+ | गुस्ताख़ बंदर रेलिंग पर से गायब है | ||
+ | लड़कियों के पास पंजाबी युवक पहुँच गए हैं | ||
चंट युवक सुंदर वाली से सटकर बैठ गया है | चंट युवक सुंदर वाली से सटकर बैठ गया है | ||
− | उसे | + | उसे यहाँ-वहाँ छू रहा है |
लड़की शर्म से पिघल रही है | लड़की शर्म से पिघल रही है | ||
− | आँखें नीची किए | + | आँखें नीची किए हँसती जा रही है |
उसके ओठ सिमट नहीं पा रहे हैं | उसके ओठ सिमट नहीं पा रहे हैं | ||
− | दंत पंक्तियाँ छिपाए नहीं छिप रही हैं | + | दंत-पंक्तियाँ छिपाए नहीं छिप रही हैं |
साँवली लड़की कभी कलाई की घड़ी देखती है | साँवली लड़की कभी कलाई की घड़ी देखती है | ||
पंक्ति 123: | पंक्ति 134: | ||
जो लटक कर साढ़े छह बजा रही हैं | जो लटक कर साढ़े छह बजा रही हैं | ||
साधारण युवक की आँखें मशोबरा के पार | साधारण युवक की आँखें मशोबरा के पार | ||
− | कोहरे में छिप गई | + | कोहरे में छिप गई सफ़ेद चोटियों में कुछ तलाश रहीं हैं |
वह बेचैन है मानो अभी कविता सुना देगा | वह बेचैन है मानो अभी कविता सुना देगा | ||
तापमान बेहद बढ़ चुका है | तापमान बेहद बढ़ चुका है | ||
'''+90c''' | '''+90c''' | ||
+ | |||
कुछ पुलिस वाले | कुछ पुलिस वाले | ||
नियम तोड़ रहे एक घोड़े वाले को | नियम तोड़ रहे एक घोड़े वाले को | ||
पंक्ति 141: | पंक्ति 153: | ||
'''+100c''' | '''+100c''' | ||
− | मेरे बगल में स्टेट लाइब्रेरी | + | |
− | साफ सुथरी, मेरी | + | मेरे बगल में स्टेट लाइब्रेरी ख़ामोश खडी है |
+ | साफ-सुथरी, मेरी सफ़ेद कॉलर जैसी | ||
मेरी मनपसंद जगह ! | मेरी मनपसंद जगह ! | ||
− | + | वहाँ भीतर ठंडक होगी क्या ? | |
तापमान बर्दाश्त से बाहर हो गया है | तापमान बर्दाश्त से बाहर हो गया है | ||
11.05.2002 | 11.05.2002 | ||
</poem> | </poem> |
14:18, 10 जनवरी 2012 का अवतरण
( सामान्य से दस डिग्री ऊपर)
+10c
भीड़ कभी छितराती है
कभी इकट्ठी हो जाती है
तिकोने मैदान पर विभिन्न रंगों के चित्र उभरते हैं
एक दूसरे में घुलते हैं
स्पष्ट होते हैं
बिखर कर बदल जाते हैं
कभी नीली जीन्स की नदी-सी एक
दूर नगर निगम के दफ़्तर तक चली जाती है
पतली और पतली होती
जल-पक्षियों से, डूबते, उतराते हैं
उस पर रंग बिरंगी टी-शर्ट्स और टोपियाँ
धूप सीधी सर पर है एकदम कड़़क
और तापमान बढ़ा हुआ
+20c
बच्चे बड़े बड़े गुब्बारे ओढ़ रहे हैं
गोल लम्बूतरे
बड़ी-बड़ी गुलाबी कैंडीज़ में से झाँकता
एक मरियल काला बच्चा
मेरे पास आकर रोता है -
‘अंकल ले लो न, कोई भी नहीं ले रहा’’
उसकी आँखें प्रोफेशनल हैं
फिर भी भीतर कुछ काँप-सा जाता है
तापमान पहले से बढ़ गया है
+30c
प्लास्टिक का हेलीकॅाप्टर
रह-रह कर मेरे पास तक उड़ा चला आता है
लौट कर लड़खड़ाता लैन्ड करता है
रेलिंग पर बैठा बड़ा-सा बन्दर
दो लड़कियों की चुन्नी पकड़ता, मुँह बनाता, डराता है
लड़कियाँ
एक सुन्दर, गोरी, लाल-लाल गालों वाली
दूसरी साधारण, साँवली
प्रतिवाद नहीं करतीं
शर्म से केवल मुह छिपातीं, मुस्करातीं हैं
तापमान बढ़ता ही जा रहा है
+40c
इक्के-दुक्के घोड़े वाले ठक-ठक किनारे-किनारे दौड़ रहे हैं
घोड़े वालों की चप्पलों की चट-चट
घोड़े की टापों में घुल मिल रही है
दोनो हाँफ रहें हैं
गर्म हवा की किरचियाँ हैं
धूप की झमक है
दोनों की चुंधियाई आँखों में आँसू हैं
गाढ़े सनग्लास पहने सैलानी स्वर्ग में उड़ रहा है
बड़े से छतनार दरख़्त के नीचे
आई० जी० एम० सी० में इलाज करवाने आए देहाती मरीज़ सुस्ता रहे हैं
बेकार पड़े घोड़े भी निश्चिन्त, पसरे हैं
लेकिन घोड़े वाले परेशान, दाढ़ी खुजला रहे हैं
ग्राहक की प्रतीक्षा में उन की आँखे सूख गई हैं
एकदम सुर्ख और खाली
एक लकीर भर डोल रही है उनमें
यह लकीर घोड़े और घोड़े वाले में फर्क बताती है
तापमान कुछ और बढ़ गया है
+50c
उस बड़े बन्दर को दो युवक
(एक चंट / दूसरा साधारण ढीला-ढाला-सा)
चॅाकलेट खिला रहे हैं
वह बन्दर उनके साथ गुस्ताखी नहीं करता
वे लोग बातें कर रहे हैं खुसर-फुसर
युवक ‘पंजाबी’ में
बंदर ‘बंदारी’ में
क्या फर्क पड़ता है
‘दोस्ती’ की एक ही भाषा होती है
उनकी आपस में पट रही है / जोड़-तोड़ चल रहा है
तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है
+60c
हिजड़े और बहरूपिए मचक-मचक कर चल रहे हैं
उन के ढोली गले में रूमाल बाँधे
अदब से, झुक कर उन के पीछे जा रहे हैं
पान चबाते होंठों में लम्बी-लम्बी विदेशी सिग्रेटें दबाए
गाढ़े मेकअप व मंहगे इत्र से सराबोर
इन भांडों से बेहतर ज़िन्दगी और किसकी है ?
लंगड़ी बदसूरत भिखारिन भीख न देने वालों को गालियाँ देती है
उसके अनेक पेट हैं
और हर पेट में एक भूखा बच्चा
संभ्रांत-सा दिखने वाला एक अधेड़
काला लबादा ओढ़, तेल की कटोरी हाथ में लिए
फ्रेंडशिप बैंड वाली तिब्बती लड़की के बगल में बैठ गया है
उस की बूढ़ी माँ को फेफड़ों का केंसर है
गेयटी के सामने से एक महिला गुज़र गई है
उसके सफ़ेद हो रहे बाल मर्दाना ढंग से कटे हैं
कानों में बड़ी-बड़ी बालियाँ और गले में खूब चमकदार मनके
उसकी नज़रें एक निश्चित ऊँचाई पर स्थिर हैं
उसकी बिंदास चाल में
समूचे परिदृष्य को यथावत् छोड कहीं पहुँच जाने की आतुरता है
तापमान काफी बढ़ गया है
+70c
फोटो खिंचवाते हैं
कभी-कभी किसी-किसी का कैमरा
क्लिक नहीं करता
चाहे कितना भी उलट-पलट कर देखो
कभी-कभी कुछ जोड़े
बिल्कुल क्लिक नहीं करते
फिर भी वे साथ-साथ चलते हैं
लिफ्ट में, बारिश्ता, बालजीज़ में
जाखू से उतरते हैं एक दूसरे से चिमट कर
स्केंडल पर गलबहियाँ डाले
और रिज पर एक ही घोड़े पर
ठुम्मक-ठुम्मक
घोडे़ की छिली पीठ की परवाह किए बिना ...........
तापमान एकदम बढ़ गया है ।
+80c
गुस्ताख़ बंदर रेलिंग पर से गायब है
लड़कियों के पास पंजाबी युवक पहुँच गए हैं
चंट युवक सुंदर वाली से सटकर बैठ गया है
उसे यहाँ-वहाँ छू रहा है
लड़की शर्म से पिघल रही है
आँखें नीची किए हँसती जा रही है
उसके ओठ सिमट नहीं पा रहे हैं
दंत-पंक्तियाँ छिपाए नहीं छिप रही हैं
साँवली लड़की कभी कलाई की घड़ी देखती है
कभी चर्च की टूटी हुई घड़ी की सूईयों को
जो लटक कर साढ़े छह बजा रही हैं
साधारण युवक की आँखें मशोबरा के पार
कोहरे में छिप गई सफ़ेद चोटियों में कुछ तलाश रहीं हैं
वह बेचैन है मानो अभी कविता सुना देगा
तापमान बेहद बढ़ चुका है
+90c
कुछ पुलिस वाले
नियम तोड़ रहे एक घोड़े वाले को
बैंतों से ताड़-ताड़ पीटने लगे हैं
घोड़े वाले की पीठ पर लाल-नीले निशान पड़ गए हैं
गुस्सा पीए हुए उसके साथी उसे पिटते हुए देखते रह गए हैं
पुलिस वाले उसे घसीटते हुए ले जा रहे हैं
वह ज़िबह किए जा रहे सूअर की तरह गों-गों चिल्ला रहा है
गाँधी जी की सुनहरी पीठ शान्तिपूर्वक चमक रही है
इन्दिरा धूप और गुस्सा खा कर कलिया गई हैं
परमार चिनार के पत्तों में छिपे झेंप रहे हैं
तापमान भीतर से बढ़ने लगा है
+100c
मेरे बगल में स्टेट लाइब्रेरी ख़ामोश खडी है
साफ-सुथरी, मेरी सफ़ेद कॉलर जैसी
मेरी मनपसंद जगह !
वहाँ भीतर ठंडक होगी क्या ?
तापमान बर्दाश्त से बाहर हो गया है
11.05.2002