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23:16, 14 जनवरी 2012 के समय का अवतरण
हम दोनों,
रात-रात-भर, जाग-जागकर
खेत सींचते थे
मैं और पिता ।
वे मुझे सींचना सिखाते थे...
सिखाते थे वह सब कुछ
जो उन्हें आता था ।
सब कुछ सीखकर मैं निकल भागा
और पिता भी...नहीं रहे,
रोना चलता रहा दिनों तक
हम भी रोए—
तब से परती हैं खेत, अब
कौन जोते बोए ।