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"दो-चार गाम / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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Prabhat.gbpec (चर्चा | योगदान) (हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी.....) |
Prabhat.gbpec (चर्चा | योगदान) (हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी.....) |
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दो-चार गाम राह को | दो-चार गाम राह को | ||
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हमवार देखना | हमवार देखना | ||
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फिर हर क़दम पे इक नयी | फिर हर क़दम पे इक नयी | ||
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दीवार देखना | | दीवार देखना | | ||
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आँखों की रौशनी से है | आँखों की रौशनी से है | ||
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हर संग आइना | हर संग आइना | ||
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हर आईने में खुद को | हर आईने में खुद को | ||
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गुनाहगार देखना | | गुनाहगार देखना | | ||
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हर आदमी में होते हैं | हर आदमी में होते हैं | ||
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दस-बीस आदमी | दस-बीस आदमी | ||
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जिसको भी देखना हो | जिसको भी देखना हो | ||
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कई बार देखना | | कई बार देखना | | ||
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मैदाँ की हार-जीत तो | मैदाँ की हार-जीत तो | ||
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क़िस्मत की बात है | क़िस्मत की बात है | ||
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टूटी है जिसके हाथ में | टूटी है जिसके हाथ में | ||
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तलवार देखना | | तलवार देखना | | ||
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दरिया के उस किनारे | दरिया के उस किनारे | ||
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सितारे भी फूल भी | सितारे भी फूल भी | ||
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दरिया चढ़ा हुआ हो तो | दरिया चढ़ा हुआ हो तो | ||
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उस पार देखना | | उस पार देखना | | ||
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अच्छी नहीं है शहर के | अच्छी नहीं है शहर के | ||
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रस्तों की दोस्ती | रस्तों की दोस्ती | ||
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आँगन में फैल जाए न | आँगन में फैल जाए न | ||
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बाज़ार देखना.....! | बाज़ार देखना.....! |
17:00, 17 जनवरी 2012 का अवतरण
दो-चार गाम राह को
हमवार देखना
फिर हर क़दम पे इक नयी
दीवार देखना |
आँखों की रौशनी से है
हर संग आइना
हर आईने में खुद को
गुनाहगार देखना |
हर आदमी में होते हैं
दस-बीस आदमी
जिसको भी देखना हो
कई बार देखना |
मैदाँ की हार-जीत तो
क़िस्मत की बात है
टूटी है जिसके हाथ में
तलवार देखना |
दरिया के उस किनारे
सितारे भी फूल भी
दरिया चढ़ा हुआ हो तो
उस पार देखना |
अच्छी नहीं है शहर के
रस्तों की दोस्ती
आँगन में फैल जाए न
बाज़ार देखना.....!