भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इन्सान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(uploaded by Prabhat)
 
(uploaded by Prabhat)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
(पाकिस्तान से लौटने के बाद )
 +
 
इन्सान में हैवान
 
इन्सान में हैवान
  
पंक्ति 35: पंक्ति 37:
  
  
उठता है दिलो-जाँ से
+
उठता* है दिलो-जाँ से
  
 
धुआँ दोनों तरफ़ ही
 
धुआँ दोनों तरफ़ ही
पंक्ति 42: पंक्ति 44:
  
 
यहाँ भी है वहाँ भी |
 
यहाँ भी है वहाँ भी |
 +
 +
 +
--------------------------------
 +
* देख तो दिल कि जाँ से उठता है, ये धुआँ सा कहाँ से उठता है--'मीर'

13:05, 19 जनवरी 2012 का अवतरण

(पाकिस्तान से लौटने के बाद )

इन्सान में हैवान

यहाँ भी है वहाँ भी

अल्लाह निगहबान

यहाँ भी है वहाँ भी |


खूँख्वार दरिंदों के

फ़क़त नाम अलग हैं

शहरों में बयाबान

यहाँ भी है वहाँ भी |


रहमान की कुदरत हो

या भगवान की मूरत

हर खेल का मैदान

यहाँ भी है वहाँ भी |


हिन्दू भी मज़े में है

मुसलमाँ भी मज़े में

इन्सान परेशान

यहाँ भी है वहाँ भी |


उठता* है दिलो-जाँ से

धुआँ दोनों तरफ़ ही

ये 'मीर' का दीवान

यहाँ भी है वहाँ भी |



  • देख तो दिल कि जाँ से उठता है, ये धुआँ सा कहाँ से उठता है--'मीर'