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"तहक़ीक़-ऐ-हक़ / ”काज़िम” जरवली" के अवतरणों में अंतर
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21:57, 20 जनवरी 2012 के समय का अवतरण
जब शाम हुई अपने दीये हमने जलाये,
सूरज का उजाला कभी शब् तक नहीं पहुंचा ।
जिस फूल मे खुशबु थी उधर सर को झुकाया,
हर फूल के मै नाम-ओ-नसब तक नहीं पहुंचा ।। --काज़िम जरवली