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"उतरी होटों से आस लगती है / राजेश चड्ढा" के अवतरणों में अंतर

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06:51, 23 जनवरी 2012 के समय का अवतरण

उतरी होटों से आस लगती है
तिश्नग़ी अब लिबास लगती है

बहते पानी को क्या छुआ मैने
अब नदी भी उदास लगती है

जिस्म तो आ गया है साहिल पे
डूबती सांस - सांस लगती है

आंख में ख़्वाब भी है गीला सा
इक नमी आस - पास लगती है

मैं समंदर हूं और मुझको भी
इक नदी भर के प्यास लगती है