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"भजन सुख क्यों छांडे मन धीर / शिवदीन राम जोशी" के अवतरणों में अंतर
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भजन सुख क्यों छांडे मन धीर।
जां सुख ते उपजत उर आनंद, करें कृपा रघुबीर।
विषय वासना भूल न त्यागे, कैसी नींद तनिक ना जागे,
मौत सिराने खड़ी हुई है, भव भय तां में पीर।
नेम धर्म व्रत पल में छांडे, काम क्रोध छांडे नहीं बा़ढ़े,
लोभ मोह की पहिन रहा तू, लोहे की जंजीर।
ये दुनियां, दुनियां भदरंगी, देख रहा क्यू ये हैं नंगी,
रहने दे, ढ़क परदा नैना, मति बहावे नीर।
कहे शिवदीन संतजन साथी,सिवा राम के कौन संगाती,
सज्जन संत उबारे भव से, लगजा परली तीर।