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"ख़ौफ़ का ख़ंजर जिगर में जैसे हो उतरा हुआ / नीरज गोस्वामी" के अवतरणों में अंतर
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20:48, 31 जनवरी 2012 के समय का अवतरण
ख़ौफ़ का ख़ंजर जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आज कल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ
चाहते हैं आप ख़ुश रहना अगर, तो लीजिये,
हाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ
पाप क्या औ' पुण्य क्या है वो न समझेगा कभी
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में हो अटका हुआ
फूल की ख़ुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, ख़ार का सौदा हुआ
झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता- डरता हुआ
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू कहाँ है मोगरा सूखा हुआ
वो हमारे हो गए 'नीरज' ये क्या कम बात है
ख़ुदग़रज़ दुनिया में वरना कौन कब किसका हुआ