भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जब शुरू में रफ़्ता- रफ़्ता बोलता है / नीरज गोस्वामी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज गोस्वामी }} {{KKCatGhazal}} <poem> जब शुरू म...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:18, 31 जनवरी 2012 के समय का अवतरण


जब शुरू में रफ़्ता- रफ़्ता बोलता है
मुँह से बच्चे के फ़रिश्ता बोलता है

जो भी सिखला दे उसे मालिक, वही सब
कैद में मजबूर तोता बोलता है

सैर को जब आप जाते हैं चमन में
तब सुना है पत्ता पत्ता बोलता है

हूं भले मैं पुरख़तर पर पुरसुकूं हूं
बात ये नेकी का रस्ता बोलता है
पुरख़तर : खतरों भरा

आंकड़ों से लाख हमको बरगलाएं
पर हकीकत हाल खस्ता बोलता है

भूल मत जाना कभी माज़ी की भूलें
वक्त ये सबका गुजिश्ता बोलता है


आइना बन कर दिखाएँ आप ‘नीरज’
सच जो होकर भी शिकस्ता, बोलता है