भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इधर यह ज़बाँ कुछ बताती नहीं है / नीरज गोस्वामी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज गोस्वामी }} {{KKCatGhazal}} <poem> इधर यह ज़...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:20, 31 जनवरी 2012 के समय का अवतरण


इधर यह ज़बाँ कुछ बताती नहीं है
उधर आँख कुछ भी छुपाती नहीं है

पता है रिहाई की दुश्वारियां पर
ये क़ैदे क़फ़स भी तो भाती नहीं है

कमी रह गयी होगी कुछ तो कशिश में
सदा लौट कर यूँ ही आती नहीं है

मुझे रास वीरानियाँ आ गयी हैं
तिरी याद भी अब सताती नहीं है

ख़फा है महरबान है कौन जाने
हवा जब दिये को बुझाती नहीं है

रिआया समझदार होने लगी अब
अदा हुक्मरां की लुभाती नहीं है

अगर हो गए सोच में आप बूढ़े
तो बारिश बदन को जलाती नहीं है

गुमाँ प्यार का हो रहा तब से 'नीरज'
कसम जब से मेरी वो खाती नहीं है