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"उसने आईने रख दिए हर सू / राजीव भरोल" के अवतरणों में अंतर
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22:34, 1 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
मैंने चाहा था सच दिखे हर सू,
उसने आईने रख दिए हर सू।
ख्वाहिशों को हवस के सहरा में,
धूप के काफिले मिले हर सू।
काँच के घर हैं, टूट सकते हैं,
यूँ न पत्थर उछालिए हर सू।
फूल भी नफरतों के मौसम में,
खार बन कर बिखर गए हर सू।
लोग जल्दी में किसलिए हैं यहाँ,
हड़बड़ाहट सी क्यों दिखे हर सू?