भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घोड़े / सुधीर सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह=रात जब चन्द...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:37, 8 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

(अनुराधा ऋषि की पेंटिंग देखकर)

साँझ का झुटपुटा है
और घोड़े हैं परस्पर सटे हुए
एज-दूजे की देह से थकान मिटाते हुए
रगड़ते हुए गर्दन से गर्दन
धूसर धरती को देते हुए नया बिम्ब
न जाने कितने योजन
दूर से चलकर आए हैं घोड़े
थकान के बावजूद व्यग्र
उतने ही खड़े-खड़े निकाल लें नींद
घोड़ों में छिपी है आदिम इच्छा
थकान उतरने की देर
कि यही घोड़े
जाकर खींच लाएँगे धरती पर
सूर्य का रथ