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"आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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आँखों से आँखें चार हुईं मुस्कुराए लब | आँखों से आँखें चार हुईं मुस्कुराए लब | ||
18:01, 8 फ़रवरी 2012 का अवतरण
आँखों ने कह दिया जो कभी कह न पाए लब
हालाँकि उस ने बारहा अपने हिलाए लब
चेहरे से जब नक़ाब हवा ने उलट दिया
देखा मुझे तो दाँतों से उसने दबाए लब
तूफ़ान मेरे दिल में था उसको भी थी तलाश
आँखों से आँखें चार हुईं मुस्कुराए लब
इक दिल है एक दिल में कई ग़म हैं क्या कहूँ
इज़हारे ग़म को मेरे बहुत तिलमिलाए लब
अश्कों का एक दरिया मिला रेगजार में
गम्भीरता की धुन पे बहुत गुनगुनाए लब
चमकी लगाई उसने जो लाली के बाद में
तारों भरे गगन की तरह झिलमिलाए लब
जब भी 'रक़ीब' उससे मुलाक़ात हो गई
चाहा के हाले-दिल कहूँ पर कह न पाए लब