"बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं / जयकृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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हमारा सच कभी देखा नहीं है इनकी आँखों ने | हमारा सच कभी देखा नहीं है इनकी आँखों ने | ||
− | हमारे रहनुमा किस रंग का चश्मा | + | हमारे रहनुमा किस रंग का चश्मा लगाते हैं । |
अभी हर शख़्स के घर का पता मालूम हैं इनको | अभी हर शख़्स के घर का पता मालूम हैं इनको |
14:18, 9 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
सभी सरसब्ज़ मौसम के नये सपने दिखाते हैं
हमें मालूम है वो किस तरह वादे निभाते हैं ।
इलेक्शन में हुनर, जादूगरी सब देखिए इनकी
ये हर भाषण में सड़कें और टूटे पुल बनाते हैं ।
चलो मिल जाएगी उस वक़्त पे दो वक़्त की रोटी
हम इस मकसद से ज़िन्दाबाद के नारे लगाते हैं ।
हमारा सच कभी देखा नहीं है इनकी आँखों ने
हमारे रहनुमा किस रंग का चश्मा लगाते हैं ।
अभी हर शख़्स के घर का पता मालूम हैं इनको
सदन में जाके ये पूरा इलाका भूल जाते हैं ।
पुरानी साइकिल, हाथी, कमल, पंजा नया क्या है
हमें हर बार ये देखा हुआ सर्कस दिखाते हैं ।
हमारे वोट से संसद में नाकाबिल पहुँचते हैं
जो काबिल हैं गुनाहों से हमारे हार जाते हैं ।
वो साहब हैं उन्हें हर काम के ख़ातिर हैं चपरासी
हम अपना बोझ अपने हाथ से सिर पर उठाते हैं ।
तबाही देखते हैं वो हमारी वायुयानों से
हम दरिया में बिना कश्ती के ही गोता लगाते हैं ।
जो सत्ता में है वो सूरज उगा लेते हैं रातों को
हमारे घर दीये बस साँझ को ही टिमटिमाते हैं ।
भँवर में घूमती कश्ती के हम ऐसे मुसाफ़िर हैं
न हम इस पार आते हैं न हम उस पार जाते हैं ।
ये संसद हो गई बाज़ार इसके मायने क्या हैं
बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं ।