भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वो चेहरा / शमशेर बहादुर सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = शमशेर बहादुर सिंह }} {{KKCatKavita}} <poem> बार-...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:35, 17 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
बार-बार क्यों वह एक सुनहरी मोहर-सा बनकर
वो चेहरा, एक सजीव ठप्पा-सा मेरे सीने पर,
उभर-उभर उठता है— बार-बार
एक सजीव ठप्पा-सा वो चेहरा ?
वही चेहरा ?
वो छवि मैंने
तुम्हारे अन्दर देखी, जिसे मैं
ढूँढ़ रहा था
कोई अमर सिद्धान्त हो जैसे, जो मेरे अन्दर
प्रतिबिम्बित हो रहा था
झीने बादलों में सूर्य-सा