भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वार्ता:अटल बिहारी वाजपेयी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: * मैंने जन्म नहीं मांगा था / Atal Vihari Bajpeyi {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अटल बिहारी …)
 
(आये जिस जिस की हिम्मत हो / अटल बिहारी वाजपेयी: नया विभाग)
पंक्ति 25: पंक्ति 25:
 
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
 
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
 
किन्तु मरण की मांग करूँगा।
 
किन्तु मरण की मांग करूँगा।
 +
</poem>
 +
 +
== आये जिस जिस की हिम्मत हो / अटल बिहारी वाजपेयी ==
 +
 +
 +
<poem>
 +
 +
हिन्दु महोदधि की छाती में धधकी अपमानों की ज्वाला
 +
और आज आसेतु हिमाचल मूर्तिमान हृदयों की माला |
 +
 +
सागर की उत्ताल तरंगों में जीवन का जी भर कृन्दन
 +
सोने की लंका की मिट्टी लख कर भरता आह प्रभंजन |
 +
 +
शून्य तटों से सिर टकरा कर पूछ रही गंगा की धारा
 +
सगरसुतों से भी बढ़कर हा आज हुआ मृत भारत सारा |
 +
 +
यमुना कहती कृष्ण कहाँ है, सरयू कहती राम कहाँ है
 +
व्यथित गण्डकी पूछ रही है, चन्द्रगुप्त बलधाम कहाँ है ?
 +
 +
अर्जुन का गांडीव किधर है, कहाँ भीम की गदा खो गयी
 +
किस कोने में पांचजन्य है, कहाँ भीष्म की शक्ति सो गयी ?
 +
 +
अगणित सीतायें अपहृत हैं, महावीर निज को पहचानो
 +
अपमानित द्रुपदायें कितनी, समरधीर शर को सन्धानो |
 +
 +
अलक्षेन्द्र को धूलि चटाने वाले पौरुष फिर से जागो
 +
क्षत्रियत्व विक्रम के जागो, चणकपुत्र के निश्चय जागो |
 +
 +
कोटि कोटि पुत्रो की माता अब भी पीड़ित अपमानित है
 +
जो जननी का दुःख न मिटायें उन पुत्रों पर भी लानत है |
 +
 +
लानत उनकी भरी जवानी पर जो सुख की नींद सो रहे
 +
लानत है हम कोटि कोटि हैं, किन्तु किसी के चरण धो रहे |
 +
 +
अब तक जिस जग ने पग चूमे, आज उसी के सम्मुख नत क्यों
 +
गौरवमणि खो कर भी मेरे सर्पराज आलस में रत क्यों ?
 +
 +
गत गौरव का स्वाभिमान ले वर्तमान की ओर निहारो
 +
जो जूठा खा कर पनपे हैं, उनके सम्मुख कर न पसारो |
 +
 +
पृथ्वी की संतान भिक्षु बन परदेसी का दान न लेगी
 +
गोरों की संतति से पूछो क्या हमको पहचान न लेगी ?
 +
 +
हम अपने को ही पहचाने आत्मशक्ति का निश्चय ठाने
 +
पड़े हुए जूठे शिकार को सिंह नहीं जाते हैं खाने |
 +
 +
एक हाथ में सृजन दूसरे में हम प्रलय लिए चलते हैं
 +
सभी कीर्ति ज्वाला में जलते, हम अंधियारे में जलते हैं |
 +
 +
आँखों में वैभव के सपने पग में तूफानों की गति हो
 +
राष्ट्र भक्ति का ज्वर न रूकता, आये जिस जिस की हिम्मत हो |
 +
 +
--अटल बिहारी बाजपेयी
 +
 
</poem>
 
</poem>

03:59, 20 फ़रवरी 2012 का अवतरण


  
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करुँगा।
जाने कितनी बार जिया हूँ,
जाने कितनी बार मरा हूँ।
जन्म मरण के फेरे से मैं,
इतना पहले नहीं डरा हूँ।
अन्तहीन अंधियार ज्योति की,
कब तक और तलाश करूँगा।
मैंने जन्म नहीं माँगा था,
किन्तु मरण की मांग करूँगा।
बचपन, यौवन और बुढ़ापा,
कुछ दशकों में ख़त्म कहानी।
फिर-फिर जीना, फिर-फिर मरना,
यह मजबूरी या मनमानी?
पूर्व जन्म के पूर्व बसी—
दुनिया का द्वारचार करूँगा।
मैंने जन्म नहीं मांगा था,
किन्तु मरण की मांग करूँगा।

आये जिस जिस की हिम्मत हो / अटल बिहारी वाजपेयी


हिन्दु महोदधि की छाती में धधकी अपमानों की ज्वाला
और आज आसेतु हिमाचल मूर्तिमान हृदयों की माला |

सागर की उत्ताल तरंगों में जीवन का जी भर कृन्दन
सोने की लंका की मिट्टी लख कर भरता आह प्रभंजन |

शून्य तटों से सिर टकरा कर पूछ रही गंगा की धारा
सगरसुतों से भी बढ़कर हा आज हुआ मृत भारत सारा |

यमुना कहती कृष्ण कहाँ है, सरयू कहती राम कहाँ है
व्यथित गण्डकी पूछ रही है, चन्द्रगुप्त बलधाम कहाँ है ?

अर्जुन का गांडीव किधर है, कहाँ भीम की गदा खो गयी
किस कोने में पांचजन्य है, कहाँ भीष्म की शक्ति सो गयी ?

अगणित सीतायें अपहृत हैं, महावीर निज को पहचानो
अपमानित द्रुपदायें कितनी, समरधीर शर को सन्धानो |

अलक्षेन्द्र को धूलि चटाने वाले पौरुष फिर से जागो
क्षत्रियत्व विक्रम के जागो, चणकपुत्र के निश्चय जागो |

कोटि कोटि पुत्रो की माता अब भी पीड़ित अपमानित है
जो जननी का दुःख न मिटायें उन पुत्रों पर भी लानत है |

लानत उनकी भरी जवानी पर जो सुख की नींद सो रहे
लानत है हम कोटि कोटि हैं, किन्तु किसी के चरण धो रहे |

अब तक जिस जग ने पग चूमे, आज उसी के सम्मुख नत क्यों
गौरवमणि खो कर भी मेरे सर्पराज आलस में रत क्यों ?

गत गौरव का स्वाभिमान ले वर्तमान की ओर निहारो
जो जूठा खा कर पनपे हैं, उनके सम्मुख कर न पसारो |

पृथ्वी की संतान भिक्षु बन परदेसी का दान न लेगी
गोरों की संतति से पूछो क्या हमको पहचान न लेगी ?

हम अपने को ही पहचाने आत्मशक्ति का निश्चय ठाने
पड़े हुए जूठे शिकार को सिंह नहीं जाते हैं खाने |

एक हाथ में सृजन दूसरे में हम प्रलय लिए चलते हैं
सभी कीर्ति ज्वाला में जलते, हम अंधियारे में जलते हैं |

आँखों में वैभव के सपने पग में तूफानों की गति हो
राष्ट्र भक्ति का ज्वर न रूकता, आये जिस जिस की हिम्मत हो |

--अटल बिहारी बाजपेयी