"मेरे दामन में काँटे हैं, मेरी आँखों में पानी हैं.. / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
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मगर कैसे बताऊँ मैं ये किसकी मेहरबानी है | मगर कैसे बताऊँ मैं ये किसकी मेहरबानी है | ||
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− | + | तेरी दुनिया भी फानी है, मेरी दुनिया भी फ़ानी है | |
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+ | वफ़ा नाज़ुक सी कश्ती है ये अब डूबी कि तब डूबी | ||
+ | मुहब्बत में यकीं के साथ थोड़ी बदगुमानी है | ||
तुम्हें हम फासलों से देखते थे औ'र मचलते थे | तुम्हें हम फासलों से देखते थे औ'र मचलते थे | ||
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मिटा कर नक्श कदमों के, चलो अनजान बन जाएँ | मिटा कर नक्श कदमों के, चलो अनजान बन जाएँ | ||
मिलें शायद कभी हम-तुम, कि लंबी ज़िंदगानी है | मिलें शायद कभी हम-तुम, कि लंबी ज़िंदगानी है | ||
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+ | ये मत पूछो कि कितने रंग बदले हैं मैंने पल-पल | ||
+ | ये मेरी ज़िंदगी क्या, एक मुजरिम की कहानी है | ||
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+ | गुज़ारे माँ की गोदी में, सुनहरे दिन थे बचपन के | ||
+ | तेरी कुर्बत में जो बीता वही लम्हा जवानी है | ||
वफ़ा के नाम पर 'श्रद्धा' न हो कुर्बान अब कोई | वफ़ा के नाम पर 'श्रद्धा' न हो कुर्बान अब कोई | ||
कहानी हीर-रांझा की पुरानी थी, पुरानी है | कहानी हीर-रांझा की पुरानी थी, पुरानी है | ||
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19:42, 20 फ़रवरी 2012 का अवतरण
मेरे दामन में काँटे हैं, मेरी आँखों में पानी है
मगर कैसे बताऊँ मैं ये किसकी मेहरबानी है
खुला ये राज़ मुझ पर ज़िंदगी का देर से शायद
तेरी दुनिया भी फानी है, मेरी दुनिया भी फ़ानी है
वफ़ा नाज़ुक सी कश्ती है ये अब डूबी कि तब डूबी
मुहब्बत में यकीं के साथ थोड़ी बदगुमानी है
तुम्हें हम फासलों से देखते थे औ'र मचलते थे
सज़ा बन जाती है कुरबत, अजब दिल की कहानी है
मिटा कर नक्श कदमों के, चलो अनजान बन जाएँ
मिलें शायद कभी हम-तुम, कि लंबी ज़िंदगानी है
ये मत पूछो कि कितने रंग बदले हैं मैंने पल-पल
ये मेरी ज़िंदगी क्या, एक मुजरिम की कहानी है
गुज़ारे माँ की गोदी में, सुनहरे दिन थे बचपन के
तेरी कुर्बत में जो बीता वही लम्हा जवानी है
वफ़ा के नाम पर 'श्रद्धा' न हो कुर्बान अब कोई
कहानी हीर-रांझा की पुरानी थी, पुरानी है