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− | कन्हाई तुम्हारे पुत्र होकर प्रकट हुए हैं । इस दिन के लिये तुमने जो सामग्री | + | तब यशोदा जी हँसकर इस प्रकार कहने लगीं--`व्रजराज को बुला लो । उनके पहले किये हुए तप का फल प्रकट हुआ है, वे आकर पुत्र का मुख देखें ।' (यह समाचार पाकर) श्रीनन्द जी आये, वे उस समय हँस रहे हैं, आनन्द उनके हृदय में समाता नहीं । सूरदास जी कहते हैं-सभी व्रजवासी हर्षित हो रहे हैं । वे आज राजा या कंगाल किसी की गणना नहीं करते (मर्यादा छोड़कर आनन्द मना रहे हैं ।) |
− | सजाकर एकत्र की है वह सब मँगवा लो । वदी लोगों तथा अन्य गुणी जनों (नट, नर्तक, | + | |
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23:09, 5 अक्टूबर 2007 के समय का अवतरण
राग गांधार
उठीं सखी सब मंगल गाइ ।
जागु जसोदा, तेरैं बालक उपज्यो, कुँअर कन्हाइ ॥
जो तू रच्या-सच्यो या दिन कौं, सो सब देहि मँगाइ ।
देहि दान बंदीजन गुनि-गन, ब्रज-बासनि पहिराइ ॥
तब हँसि कहत जसोदा ऐसैं, महरहिं लेहु बुलाइ ।
प्रगट भयौ पूरब तप कौ फल, सुत-मुख देखौ आइ ॥
आए नंद हँसत तिहिं औसर, आनँद उर न समाइ ।
सूरदास ब्रज बासी हरषे, गनत न राजा-राइ ॥
सब सखियाँ मंगलगान करने लगीं (उन्होंने कहा-)`यशोदा रानी ! जाओ, कुँवर कन्हाई तुम्हारे पुत्र होकर प्रकट हुए हैं । इस दिन के लिये तुमने जो सामग्री सजाकर एकत्र की है वह सब मँगवा लो । वदी लोगों तथा अन्य गुणी जनों (नट, नर्तक, गायकादि) को दान दो, व्रज की सौभाग्यवती नारियों को पहिरावा (वस्त्र-आभूषण) दो ।'
तब यशोदा जी हँसकर इस प्रकार कहने लगीं--`व्रजराज को बुला लो । उनके पहले किये हुए तप का फल प्रकट हुआ है, वे आकर पुत्र का मुख देखें ।' (यह समाचार पाकर) श्रीनन्द जी आये, वे उस समय हँस रहे हैं, आनन्द उनके हृदय में समाता नहीं । सूरदास जी कहते हैं-सभी व्रजवासी हर्षित हो रहे हैं । वे आज राजा या कंगाल किसी की गणना नहीं करते (मर्यादा छोड़कर आनन्द मना रहे हैं ।)