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"सोज़ में भी वही इक नग़्मा है जो साज़ में / जिगर मुरादाबादी" के अवतरणों में अंतर
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सोज़ में भी वही इक नग़्मा है जो साज़ में है फ़र्क़ नज़दीक़ की और दूर की आवाज़ में है
ये सबब<ref>कारण </ref> है कि तड़प सीना-ए-हर-साज़<ref>हर वाद्य यन्त्र के सीने में </ref> में है मेरी आवाज़ भी शामिल तेरी आवाज़ में है
जो न सूरत में न म’आनी<ref>अर्थ </ref> में न आवाज़ में है दिल की हस्ती भी उसी सिलसिला-ए-राज़<ref>भेदों की श्रंखला </ref> में है
आशिकों के दिले-मजरूह <ref>घायल हृदय </ref> से कोई पूछे वो जो इक लुत्फ़ निगाहे-ग़लत -अंदाज़<ref> उचटती हुई नज़र </ref> में है
गोशे-मुश्ताक़<ref>उत्सुक कान </ref> की क्या बात है अल्लाह-अल्लाह सुन रहा हूँ मैं जो नग़्मा जो अभी साज़ में है
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शब्दार्थ
<references/>