"कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे / जिगर मुरादाबादी" के अवतरणों में अंतर
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+ | कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं<ref>पहलू में बैठे </ref> रहे | ||
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे | जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे | ||
− | ईमान-ए-कुफ़्र और न | + | ईमान-ए-कुफ़्र<ref>धर्म-अधर्म </ref> और न दुनिया व दीं <ref>दुनिया और धर्म </ref> रहे |
− | ऐ इश्क़ शादबाश कि तनहा हमीं रहे | + | ऐ इश्क़ !शादबाश <ref> प्रसन्न रहो </ref> कि तनहा हमीं रहे |
या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो | या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो | ||
− | दस्त-ए-जुनूँ रहे न रहे आस्तीं रहे | + | दस्त-ए-जुनूँ<ref>उन्माद का हाथ </ref> रहे न रहे आस्तीं<ref> आस्तीन </ref> रहे |
− | जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश कर | + | जा और कोई ज़ब्त<ref>सहनशीलता </ref> की दुनिया तलाश कर |
ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे | ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे | ||
− | मुझ को नहीं क़ुबूल दो आलम की वुस'अतें | + | मुझ को नहीं क़ुबूल दो आलम<ref>दोनों लोकों की </ref> की वुस'अतें<ref>विशालताएँ </ref> |
− | क़िस्मत में कू-ए-यार की दो ग़ज़ ज़मीं रहे | + | क़िस्मत में कू-ए-यार <ref>प्रेयसी की गली </ref> की दो ग़ज़ ज़मीं रहे |
− | दर्द-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ के ये | + | दर्द-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ <ref>विरह वेदना </ref> के ये सख़्त मरहले<ref>समस्याएँ </ref> |
हैरां हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे | हैरां हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे | ||
− | इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात देखना | + | इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात<ref> समय निकलने के बाद की क्षतिपूर्ति</ref> देखना |
रोने की हसरतें हैं जब आँसू नहीं रहे | रोने की हसरतें हैं जब आँसू नहीं रहे | ||
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08:58, 23 फ़रवरी 2012 का अवतरण
कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं<ref>पहलू में बैठे </ref> रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
ईमान-ए-कुफ़्र<ref>धर्म-अधर्म </ref> और न दुनिया व दीं <ref>दुनिया और धर्म </ref> रहे
ऐ इश्क़ !शादबाश <ref> प्रसन्न रहो </ref> कि तनहा हमीं रहे
या रब किसी के राज़-ए-मोहब्बत की ख़ैर हो
दस्त-ए-जुनूँ<ref>उन्माद का हाथ </ref> रहे न रहे आस्तीं<ref> आस्तीन </ref> रहे
जा और कोई ज़ब्त<ref>सहनशीलता </ref> की दुनिया तलाश कर
ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे
मुझ को नहीं क़ुबूल दो आलम<ref>दोनों लोकों की </ref> की वुस'अतें<ref>विशालताएँ </ref>
क़िस्मत में कू-ए-यार <ref>प्रेयसी की गली </ref> की दो ग़ज़ ज़मीं रहे
दर्द-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ <ref>विरह वेदना </ref> के ये सख़्त मरहले<ref>समस्याएँ </ref>
हैरां हूँ मैं कि फिर भी तुम इतने हसीं रहे
इस इश्क़ की तलाफ़ी-ए-माफ़ात<ref> समय निकलने के बाद की क्षतिपूर्ति</ref> देखना
रोने की हसरतें हैं जब आँसू नहीं रहे