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"तन्हाई की धूप / ”काज़िम” जरवली" के अवतरणों में अंतर
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03:29, 24 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
जब भी क़िस्सा अपना पढना,
पहले चेहरा चेहरा पढना ।
तन्हाई की धूप में तुम भी,
बैठ के अपना साया पढना ।
आवाज़ों के शहर में रहकर,
सीख गया हूँ लहजा पढना ।
हर कोंपल का हाल लिखा है,
शाख का पीला पत्ता पढना ।
भेज के नामे याद दिला दो,
भूल गया हूँ लिखना पढना ।
लोगों मेरी प्यास का क़िस्सा,
सदियों दरिया दरिया पढना ।
दीवारों पर कुछ लिखा है,
तुम भी अपना कूचा पढना ।
हिज्र की शब् में नम आँखों से,
धुंधला धुंधला सपना पढना ।
माज़ी का आएना रख कर,
खुद को थोडा थोडा पढना ।
मैं हूँ संगे मील की सूरत,
मुझसे मेरा रस्ता पढना ।
जीस्त का मतलब क्या है "काज़िम",
अपना अपना लिखना पढना ।। ---- काज़िम जरवली