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"आवाज़ की बूँद... / सुशीला पुरी" के अवतरणों में अंतर
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आवाज़ की बूँद...
स्वर्गीय पंडित भीमसेन जोशी जी के अद्भुत सुरों को समर्पित अपनी एक कविता ....
खुशी के आदिम उद्घोष सी
गूँजती है तुम्हारी आवाज़
मेघ बनकर फूँकती है
मन मे मल्हार
बूँदों सी झरती है देह पर
नेह ही नेह ,
रक्तकोशिकाओं के पाँवों में
बंध जाते हैं रुनझुन घुंघरू
अनगिन छंदों में गूँथकर आह्लाद
हवाएँ कर देती हैं अभिषेक
और वापस लौट आती है
हंसी , साँसों की ,
चुप्पियाँ चुपचाप चुन लेती हैं
खण्डहरों के खोह
स्वप्न जगते हैं...कि पलकें ढाँप लेते हैं
तुम्हारी आवाज़ की बरखा
खींच लाती हैं गगन से रश्मियाँ
खिली गीली गुनगुनी सी धूप
जिसे ओढ़ती हूँ मै
ज्ञात नहीं सदियों सदियों से
सुर तुम्हारे जी रहे मुझको
कि मै ही ले रही हूँ जन्म फिर फिर ...!