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उपस्थिति
तुम नहीं थे
तब भी थे तुम
स्पर्श की धरा पर
हरी घास से
बीज के भीतर
वृक्ष थे तुम ,
बाँसुरी से
अधर पर
नहीं थे तुम
तब भी थे
अमिट राग से ,
मौन के आर्त पल मे
स्वरों का हाथ थामे
व्याप्त थे पल पल
शब्द पश्यन्ती
महाकाव्य से ....!