भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"याद / सुशीला पुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला पुरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> या...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

07:52, 24 फ़रवरी 2012 का अवतरण



याद
याद आई ऐसे
जैसे, हवा आई चुपके से
और रच... गई साँस ,
बिना किसी आहट के
जैसे, दाखिल हुई धूप
कमरे मे
और भर गई उजास ,
जैसे खोलकर पिंजड़ा
उड़ गया पंक्षी
आकाश मे
और पंखों मे समा गया हो
रंग नीला- नीला ,
जैसे, झरी हो ओस
बिल्कुल दबे पाँव
और पसीज गया हो
मन का शीशा
उजली सी दिखने लगी हो
पूरी दुनिया.....,
जैसे ,गर्भ मे हंसा हो भ्रूण
और धरती की तरह गोल
माँ की कोख मे
मचला हो नृत्य के लिए ....!