भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कन्हैया हालरौ हलरोइ / सूरदास

14 bytes added, 14:31, 28 सितम्बर 2007
यह सुख सूरदास कैं नैननि, दिन-दिन दूनौ हो ॥<br><br>
भावार्थ :-- (माता गा रही हैं) `कन्हैया! पलनेमें पलने में झूल! मैं तेरे इस चन्द्रमुखकी चन्द्रमुख की बलिहारी जाऊँ जो अपार शोभा से अलग ही (अद्भुतरूपसेअद्भुत रूप से) परिपूर्ण है । `माई री!' (पूतनाका पूतना का स्मरण करके यह उद्गार करके तब प्रार्थना करती हैं-) दैव! मैं तेरे पैरौं पड़ती हूँ, इस कमललोचनसे कमललोचन से छल करने इस व्रजमें व्रज में जो कोई आवे,उसे तू उस पूतनाके पूतना के समान ही तुरन्त नष्ट कर देना । सुना है तू महान् देवता है, संसारको संसार को पवित्र करनेवाला करने वाला है, इस कुलका स्वामी है, सो मैं तेरे चरणों की पूजा करूँगी, मेरे इस बालकको बालक को झटपट बड़ा कर दे । मेरा शिशु द्वितीयाके चन्द्रमाकी द्वितीया के चन्द्रमा की भाँति बढ़े और यह माता यशोदा उसे देखे ।' सूरदासजी सूरदास जी कहते हैं -मेरे नेत्रों के लिये भी यह सुख दिनों-दिन दुगुना बढ़ता रहे ।