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"रफ़्ता रफ़्ता आदमी जब क़ाफ़िलों में बट गया / रविंदर कुमार सोनी" के अवतरणों में अंतर

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रफ़्ता रफ़्ता आदमी जब क़ाफ़िलों में बट गया
 
रफ़्ता रफ़्ता आदमी जब क़ाफ़िलों में बट गया
 
परदा मंजिल पर पड़ा था जो वो आख़िर हट गया
 
परदा मंजिल पर पड़ा था जो वो आख़िर हट गया
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सुबह नो आते ही घर में रोशनी ऐसी हुई
 
सुबह नो आते ही घर में रोशनी ऐसी हुई
 
देखते ही देखते सारा अँधेरा छट गया
 
देखते ही देखते सारा अँधेरा छट गया
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सीखना था ज़िन्दगी से तुझ को नफ़रत का सबक़
 
सीखना था ज़िन्दगी से तुझ को नफ़रत का सबक़
 
प्यार का मंतर न जाने किस लिए तू रट गया
 
प्यार का मंतर न जाने किस लिए तू रट गया
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टूटना ही था उसे इक रोज़, इस का ग़म नहीं
 
टूटना ही था उसे इक रोज़, इस का ग़म नहीं
 
जितना जोड़ा ज़िन्दगी से रिश्ता उतना घट गया
 
जितना जोड़ा ज़िन्दगी से रिश्ता उतना घट गया
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दिन निकलते ही न जाने सुबह की बन कर किरण
 
दिन निकलते ही न जाने सुबह की बन कर किरण
 
कौन मेरे पास से उठ कर ये बे आहट गया
 
कौन मेरे पास से उठ कर ये बे आहट गया
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फ़ाइज़ ए मंज़िल न तू फिर भी हुआ तो क्या करूँ
 
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मैं कि इक पत्थर था तेरे रास्ते से हट गया
 
मैं कि इक पत्थर था तेरे रास्ते से हट गया
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ऐ रवि पूछो न हम से क्या बताएँ, किस तरह
 
ऐ रवि पूछो न हम से क्या बताएँ, किस तरह
 
रोते हँसते ज़िन्दगी का वक़्त सारा कट गया
 
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16:07, 25 फ़रवरी 2012 का अवतरण

रफ़्ता रफ़्ता आदमी जब क़ाफ़िलों में बट गया
परदा मंजिल पर पड़ा था जो वो आख़िर हट गया

सुबह नो आते ही घर में रोशनी ऐसी हुई
देखते ही देखते सारा अँधेरा छट गया

सीखना था ज़िन्दगी से तुझ को नफ़रत का सबक़
प्यार का मंतर न जाने किस लिए तू रट गया

टूटना ही था उसे इक रोज़, इस का ग़म नहीं
जितना जोड़ा ज़िन्दगी से रिश्ता उतना घट गया

दिन निकलते ही न जाने सुबह की बन कर किरण
कौन मेरे पास से उठ कर ये बे आहट गया

फ़ाइज़ ए मंज़िल न तू फिर भी हुआ तो क्या करूँ
मैं कि इक पत्थर था तेरे रास्ते से हट गया

ऐ रवि पूछो न हम से क्या बताएँ, किस तरह
रोते हँसते ज़िन्दगी का वक़्त सारा कट गया