भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काँटे आए कभी गुलाब आए.. / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
छो (आए काँटे, कभी गुलाब आए / श्रद्धा जैन का नाम बदलकर काँटे आए कभी गुलाब आए / श्रद्धा जैन कर दिया गया है) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<poem> | <poem> | ||
काँटे आए कभी गुलाब आए | काँटे आए कभी गुलाब आए | ||
− | + | लेकिन आए तो बेहिसाब आए | |
− | रंग | + | रंग उड़ने लगा है चेहरे का |
− | जब भी मेरी वफ़ा के बाब<ref>किस्से</ref> | + | जब भी मेरी वफ़ा के बाब<ref>किस्से</ref> आए |
− | काम आए न कोई | + | काम आए न कोई चतुराई |
− | ज़िंदगी में अगर अज़ाब आए | + | ज़िंदगी में अगर अज़ाब आए |
दोस्त हो या मेरा वो दुश्मन हो | दोस्त हो या मेरा वो दुश्मन हो | ||
− | + | पास आए तो बेनक़ाब आए | |
− | घर की छत | + | गिरनेवाली है घर की छत “श्रद्धा” |
ऐसे आलम में कैसे ख़्वाब आए | ऐसे आलम में कैसे ख़्वाब आए | ||
+ | |||
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} | ||
</poem> | </poem> |
16:12, 26 फ़रवरी 2012 का अवतरण
काँटे आए कभी गुलाब आए
लेकिन आए तो बेहिसाब आए
रंग उड़ने लगा है चेहरे का
जब भी मेरी वफ़ा के बाब<ref>किस्से</ref> आए
काम आए न कोई चतुराई
ज़िंदगी में अगर अज़ाब आए
दोस्त हो या मेरा वो दुश्मन हो
पास आए तो बेनक़ाब आए
गिरनेवाली है घर की छत “श्रद्धा”
ऐसे आलम में कैसे ख़्वाब आए
शब्दार्थ
<references/>