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"जननी देखि, छबि बलि जाति / सूरदास" के अवतरणों में अंतर

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धन्य धरनी करन पावन जन्म सूरजदास ॥<br><br>
 
धन्य धरनी करन पावन जन्म सूरजदास ॥<br><br>
  
भावार्थ :--माता (श्यामकी) शोभा देखकर बलिहारी जाती है । जैसे निर्धनको धन प्राप्त हो जाने से रात-दिन आनन्द हो रहा हो । (श्रीकृष्णचन्द्रकी) बाल-लीला देखकर हर्षित होनेवाली व्रज की नारियाँ धन्य हैं । त्रिलोकीनाथ प्रभु माताका मुख देखकर ताली बजाकर (हाथपरस्पर मिलाकर) किलकारी मारते हैं । व्रजराज श्रीनन्दजी धन्य हैं ये गोपिकाए धन्य-धन्य हैं और जिन्हें व्रजमें निवास मिला है वे भी धन्य हैं । सूरदास कहते हैं कि पृथ्वीको पवित्र करनेवाला प्रभुका अवतार धन्य है ।
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भावार्थ :--माता (श्याम की) शोभा देखकर बलिहारी जाती है । जैसे निर्धन को धन प्राप्त हो जाने से रात-दिन आनन्द हो रहा हो । (श्रीकृष्णचन्द्र की) बाल-लीला देखकर हर्षित होने वाली व्रज की नारियाँ धन्य हैं । त्रिलोकीनाथ प्रभु माता का मुख देखकर ताली बजाकर (हाथपरस्पर मिलाकर) किलकारी मारते हैं । व्रजराज श्रीनन्द जी धन्य हैं ये गोपिकाए धन्य-धन्य हैं और जिन्हें व्रज में निवास मिला है वे भी धन्य हैं । सूरदास कहते हैं कि पृथ्वी को पवित्र करनेवाला प्रभु का अवतार धन्य है ।

20:12, 28 सितम्बर 2007 का अवतरण

जननी देखि, छबि बलि जाति ।
जैसैं निधनी धनहिं पाएँ, हरष दिन अरु राति ॥
बाल-लीला निरखि हरषति, धन्य धनि ब्रजनारि ।
निरखि जननी-बदन किलकत, त्रिदस-पति दै तारि ॥
धन्य नँद, धनि धन्य गोपी, धन्य ब्रज कौ बास ।
धन्य धरनी करन पावन जन्म सूरजदास ॥

भावार्थ :--माता (श्याम की) शोभा देखकर बलिहारी जाती है । जैसे निर्धन को धन प्राप्त हो जाने से रात-दिन आनन्द हो रहा हो । (श्रीकृष्णचन्द्र की) बाल-लीला देखकर हर्षित होने वाली व्रज की नारियाँ धन्य हैं । त्रिलोकीनाथ प्रभु माता का मुख देखकर ताली बजाकर (हाथपरस्पर मिलाकर) किलकारी मारते हैं । व्रजराज श्रीनन्द जी धन्य हैं ये गोपिकाए धन्य-धन्य हैं और जिन्हें व्रज में निवास मिला है वे भी धन्य हैं । सूरदास कहते हैं कि पृथ्वी को पवित्र करनेवाला प्रभु का अवतार धन्य है ।