भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पंख कटे पंछी निकले हैं / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sheelendra (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
पंख कटे पंछी निकले हैं | पंख कटे पंछी निकले हैं | ||
भरने आज उडानें | भरने आज उडानें | ||
− | कागज | + | कागज के यानों पर चढकर |
नील गगन को पाने | नील गगन को पाने | ||
बैसाखी पर टिकी हुयी हैं | बैसाखी पर टिकी हुयी हैं | ||
जिनकी खुद औकातें | जिनकी खुद औकातें | ||
− | बाँट रहे | + | बाँट रहे दोनों हाथों से |
भर भर कर सौगातें | भर भर कर सौगातें | ||
राह दिखाने घर से निकले | राह दिखाने घर से निकले | ||
पंक्ति 31: | पंक्ति 31: | ||
दुनिया भर को भोजन देने | दुनिया भर को भोजन देने | ||
का ले रहे बयाना | का ले रहे बयाना | ||
− | टूटी | + | टूटी पतवारों से निकले |
नौका पार लगाने | नौका पार लगाने | ||
20:11, 28 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
पंख कटे पंछी निकले हैं
पंख कटे पंछी निकले हैं
भरने आज उडानें
कागज के यानों पर चढकर
नील गगन को पाने
बैसाखी पर टिकी हुयी हैं
जिनकी खुद औकातें
बाँट रहे दोनों हाथों से
भर भर कर सौगातें
राह दिखाने घर से निकले
अंधे बने सयाने
मुट्ठी ताने घूम रहे वो
गाँव गली चौबारे
जिनके घर की बनी हुयी हैं
शीशे की दीवारें
हाथ कटे कारीगर निकले
ऊँचे भवन बनाने
जिनके घर में नहीं अन्न का
बचा एक भी दाना
दुनिया भर को भोजन देने
का ले रहे बयाना
टूटी पतवारों से निकले
नौका पार लगाने
पंख कटे पंछी निकले हैं
भरने आज उडानें