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"पंख कटे पंछी निकले हैं / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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पंख कटे पंछी निकले हैं  
 
पंख कटे पंछी निकले हैं  
 
भरने आज उडानें  
 
भरने आज उडानें  
कागज कk यानों पर चढकर  
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कागज के यानों पर चढकर  
 
नील गगन को पाने  
 
नील गगन को पाने  
  
 
बैसाखी पर टिकी हुयी हैं  
 
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जिनकी खुद औकातें  
 
जिनकी खुद औकातें  
बाँट रहे दोनो हाथों से  
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बाँट रहे दोनों हाथों से  
 
भर भर कर सौगातें  
 
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राह दिखाने घर से निकले
 
राह दिखाने घर से निकले
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दुनिया भर को भोजन देने  
 
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का ले रहे बयाना  
 
का ले रहे बयाना  
टूटी पतवारो से निकले  
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टूटी पतवारों  से निकले  
 
नौका पार लगाने  
 
नौका पार लगाने  
  

20:11, 28 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

पंख कटे पंछी निकले हैं

पंख कटे पंछी निकले हैं
भरने आज उडानें
कागज के यानों पर चढकर
नील गगन को पाने

बैसाखी पर टिकी हुयी हैं
जिनकी खुद औकातें
बाँट रहे दोनों हाथों से
भर भर कर सौगातें
राह दिखाने घर से निकले
 अंधे बने सयाने

मुट्ठी ताने घूम रहे वो
गाँव गली चौबारे
जिनके घर की बनी हुयी हैं
शीशे की दीवारें
हाथ कटे कारीगर निकले
ऊँचे भवन बनाने

जिनके घर में नहीं अन्न का
बचा एक भी दाना
दुनिया भर को भोजन देने
का ले रहे बयाना
टूटी पतवारों से निकले
नौका पार लगाने

पंख कटे पंछी निकले हैं
भरने आज उडानें