भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दर्द का हमने दिलो-जाँ पे असर देख लिया / लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी }} {{KKCatGhazal}} <poem> दर्द…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
  
 
मंज़िले-शौक़ ने अंजाम-ए-सफ़र देख लिया
 
मंज़िले-शौक़ ने अंजाम-ए-सफ़र देख लिया
हमने भी मुसम्मम<ref>पक्के इरादे</ref> का असर देख लिया
+
हमने भी अज़्मे- मुसम्मम<ref>पक्के इरादे</ref> का असर देख लिया
  
 
और बढ़ता गया बेताब इरादों का हुजूम
 
और बढ़ता गया बेताब इरादों का हुजूम
पंक्ति 32: पंक्ति 32:
 
इब्ने-आदम का ये अंजामे-सफ़र देख लिया
 
इब्ने-आदम का ये अंजामे-सफ़र देख लिया
  
अश्क़ बरसाते रहे अहले-फ़लक़ छुप-छुप कर
+
अश्क बरसाते रहे अहले-फ़लक़ छुप-छुप कर
 
माह-ओ-अंजुम ने किसे ख़ाक बसर देख लिया
 
माह-ओ-अंजुम ने किसे ख़ाक बसर देख लिया
  
पंक्ति 38: पंक्ति 38:
 
तूने बा-दीदा-ए-तर<ref>नम आँखों से</ref>  वक़्ते सफ़र देख लिया
 
तूने बा-दीदा-ए-तर<ref>नम आँखों से</ref>  वक़्ते सफ़र देख लिया
  
ज़िंदगी मेरी थी मानिंदे-सदाए-सहरा
+
ज़िंदगी मेरी थी मानिंदे-सदा-ए-सहरा
 
तेरी उम्मीद ने क्यों एक नज़र देख लिया
 
तेरी उम्मीद ने क्यों एक नज़र देख लिया
  

18:38, 29 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण

दर्द का हमने दिलो-जाँ पे असर देख लिया
यास के पर्दे में जब दीदा-ए-तर<ref>भीगी हुई आँख</ref> देख लिया

मंज़िले-शौक़ ने अंजाम-ए-सफ़र देख लिया
हमने भी अज़्मे- मुसम्मम<ref>पक्के इरादे</ref> का असर देख लिया

और बढ़ता गया बेताब इरादों का हुजूम
तेरी बेबाक-निगाही ने जिधर देख लिया

देखने वाले हज़ारों हैं जहाँ में लेकिन
बात बनती है तभी तूने अगर देख लिया

ताबे नज़्ज़ारा नहीं सब्र का चारा भी नहीं
तूने आज ऐ दिले-मासूम किधर देख लिया

दिल वो शीशा है कि देखें तो नज़र लगती है
मैं छुपाता ही रहा तूने मगर देख लिया

जब तेरी रूह में उतरा तो लगा यूँ मुझको
आईना देख लिया आईना गर देख लिया

सर निगूँ होना पड़ा हुस्न को मजबूरी में
इश्क़ के हाथों में जब कासा-ए-सर देख लिया

न रहा शौक़े-तमाशा न रहा ज़ौक़े-नज़र
इब्ने-आदम का ये अंजामे-सफ़र देख लिया

अश्क बरसाते रहे अहले-फ़लक़ छुप-छुप कर
माह-ओ-अंजुम ने किसे ख़ाक बसर देख लिया

अब तो रुकना ही पड़ेगा मुझे इस दुनिया में
तूने बा-दीदा-ए-तर<ref>नम आँखों से</ref> वक़्ते सफ़र देख लिया

ज़िंदगी मेरी थी मानिंदे-सदा-ए-सहरा
तेरी उम्मीद ने क्यों एक नज़र देख लिया

हुस्न ख़ुद भी तो है मुश्ताक़े-नुमाइश ऐ ‘चाँद’
क्या हुआ शौक़ ने गर एक नज़र देख लिया

शब्दार्थ
<references/>