भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपना हाथ जगन्नाथ / नन्दल हितैषी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नन्दल हितैषी |संग्रह=बेहतर आदमी के...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:58, 29 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
ब्लैक आउट
शहर में ही नहीं
कमरे में भी है.
अंधेरों के इश्तेहार....
भ्रम की परतें
बूटों की आवाज़ों से
मद्धिम हो रही हैं
दोहराती/तेहराती
अपने रंग में एक कोट और चढ़ाती
मन से मन ने कहा
अँधेरे में,
बना लो किसी को हमसफ़र?
’थाम लो कोई विश्वसनीय हाथ’
मैंने अपना हाथ बढ़ाया
’शायद मिला ले कोई समान धर्मा’
एक हाथ
मेरे हाथ से टकराया.
बाकायदा, हाथ से हाथ मिलाया
ओह!
यह दूसरा हाथ
किसी और का नहीं
मेरा अपना ही हाथ है,
अपना हाथ
जगन्नाथ......