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को किसको दुःख देत है, कर्म देत झकझौर, | को किसको दुःख देत है, कर्म देत झकझौर, | ||
उरझत सुरझत आप ही, ध्वजा पवन के लौर | | उरझत सुरझत आप ही, ध्वजा पवन के लौर | | ||
− | ध्वजा पवन के लौर, | + | ध्वजा पवन के लौर, समझ थोरी में सारी, |
कर्म गति बलवान, गति है न्यारी-न्यारी | | कर्म गति बलवान, गति है न्यारी-न्यारी | | ||
संत समागम सुख है, सत संगत शुभ रंग, | संत समागम सुख है, सत संगत शुभ रंग, | ||
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राम गुण गायारे || | राम गुण गायारे || | ||
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+ | कर्म ही से सुख भोग मिले, सब कर्म ही से दुःख पावत नाना, | ||
+ | कर्म ही स्वर्ग विमान चढ़ावत, कर्म ही डारत नरक निशाना | | ||
+ | कर्म ही से जग में यश किरती, निंदित कर्म ही है अपमाना, | ||
+ | शिवदीन कहे नहीं आन को दोष, जो कर्म करे नर वह फल पाना | | ||
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+ | कर्मन के आधीन सकल संसार देख रे, | ||
+ | विधिना लिखे विचार बांचले सत्य लेख रे | | ||
+ | ज्ञानी ध्यानी और नृपति बनि रहे करम से, | ||
+ | चातुर मूरख लोग दुखी है और भरम से | | ||
+ | सन्यासी साधू लखे भजन करें धरि मौन, | ||
+ | शिवदीन करम के बस सभी बचा हुआ यहाँ कौन | | ||
+ | राम गुण गायारे || |
05:15, 1 मार्च 2012 का अवतरण
{{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी | {{ }}
को किसको दुःख देत है, कर्म देत झकझौर,
उरझत सुरझत आप ही, ध्वजा पवन के लौर |
ध्वजा पवन के लौर, समझ थोरी में सारी,
कर्म गति बलवान, गति है न्यारी-न्यारी |
संत समागम सुख है, सत संगत शुभ रंग,
शिवदीन सुकर्म ही कर चलो पावो प्रेम उमंग |
राम गुण गायारे ||
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कर्म चढ़ावे स्वर्ग, कर्म नरकन में डारे,
कर्म धर्म बैकुंठ, कर्म ब्रह्मलोक सिधारे |
कर्म कर्म है कर्म, कर्म की गति गहन है,
कर्म करो शुभ कर्म, बने उज्वल जनमन है |
कर्म ही से कारुंस लगे, कर्म ही धोवत दाग,
शिवदीन कर्म गति समझ के उपजवों अनुराग |
राम गुण गायारे ||
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कर्म ही से सुख भोग मिले, सब कर्म ही से दुःख पावत नाना,
कर्म ही स्वर्ग विमान चढ़ावत, कर्म ही डारत नरक निशाना |
कर्म ही से जग में यश किरती, निंदित कर्म ही है अपमाना,
शिवदीन कहे नहीं आन को दोष, जो कर्म करे नर वह फल पाना |
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कर्मन के आधीन सकल संसार देख रे,
विधिना लिखे विचार बांचले सत्य लेख रे |
ज्ञानी ध्यानी और नृपति बनि रहे करम से,
चातुर मूरख लोग दुखी है और भरम से |
सन्यासी साधू लखे भजन करें धरि मौन,
शिवदीन करम के बस सभी बचा हुआ यहाँ कौन |
राम गुण गायारे ||