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"बोल! अरी ओ धरती बोल / मजाज़ लखनवी" के अवतरणों में अंतर

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07:51, 3 मार्च 2012 के समय का अवतरण

1945 में लिखी नज्म़ ‘बोल! अरी ओ धरती बोल’ की अभिव्यक्ति सार्वकालिक सत्य थी


बोल !अरी ओ धरती बोल

राज सिंहासन डावांडोल !

बादल बिजली रैन अंधियारी

दुख की मारी परजा सारी

बूढे़ बच्चे सब दुखिया हैं

दुखिया नर हैं दुखिया नारी

बस्ती बस्ती लूट मची है

सब बनिए हैं सब व्यापारी

बोल ! ओ धरती बोल

राज सिंहासन डावांडोल !