भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किसे पता था? / शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sheelendra (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
क्या मालूम था | क्या मालूम था | ||
− | श्रम के | + | श्रम के हाथों |
रूखी सूखी रोटी होगी, | रूखी सूखी रोटी होगी, | ||
− | नंगे पांव, बदन पर | + | नंगे होंगे पांव, बदन पर |
केवल फटी लंगोटी होगी | केवल फटी लंगोटी होगी | ||
पंक्ति 41: | पंक्ति 41: | ||
छत के नाम शीश नभ होगा | छत के नाम शीश नभ होगा | ||
− | किस्मत ऐसी | + | किस्मत ऐसी खोटी होगी |
</poem> | </poem> |
21:41, 4 मार्च 2012 के समय का अवतरण
क्या मालूम था ?
क्या मालूम था
श्रम के हाथों
रूखी सूखी रोटी होगी,
नंगे होंगे पांव, बदन पर
केवल फटी लंगोटी होगी
पानी बिना
सूख जायेगी
उनके सपनों की फुलवारी,
हिस्से में
आयेगी केवल
चिंता, भूख और बेकारी,
खाली होगा पेट दिनोंदिन
खाल पीठ की मोटी होगी।
वोटों के
रगड़े झगड़े में
बंट जायेंगें उनके कुनबे,
घिस जायेंगे
रोज कचेहरी
जा जाकर पैरों के तलवे,
होगा शीश पांव पर उनके
जिनकी तबियत छोटी होगी
लाठी के
साये में उनको
अपना जीवन जीना होगा
आंख उठाने की
जुर्रत पर
घूंट दण्ड का पीना होगा
छत के नाम शीश नभ होगा
किस्मत ऐसी खोटी होगी