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"बहक गये बातो में/ शीलेन्द्र कुमार सिंह चौहान" के अवतरणों में अंतर

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आतिशी हवाओं के
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घूम रह हरकारे  
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दहक रहे फूलों के  
 
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सीनों में अंगारे  
 
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सूरज के रंग ढंग  
 
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दुश्मनों सरीखे हैं
 
दुश्मनों सरीखे हैं
मरूस्थल से प्यासे हैं  
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उपवन के रखवारे  
 
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दरवाजे बन्द किये  
 
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सन्नाटे भंग किये
 
सन्नाटे भंग किये
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आयें हैं बँटवारे  
 
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सीनों में अंगारे
 
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21:33, 5 मार्च 2012 का अवतरण

बहक गये बातो में

आतिशी हवाओं के
घूम रहे हरकारे
दहक रहे फूलों के
सीनों में अंगारे

मौसम के तेवर भी
लगते कुछ तीखे हैं
सूरज के रंग ढंग
दुश्मनों सरीखे हैं
मरुथल से प्यासे हैं
उपवन के रखवारे

बिजलियाँ गिराने को
उत्कंठित बादल हैं
साँसो के हरे भरे
नन्दनवन घायल हैं
बहक गये बातों मे
गाँव,गली, चौबारे

पथरायी चौखट ने
दरवाजे बन्द किये
घबरायी-चीखों ने
सन्नाटे भंग किये
आँगन की किस्मत में
आयें हैं बँटवारे
दहक रहे फूलों के
सीनों में अंगारे