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<poem>'''दरवाजे खोल रहे बौने'''
बन्दर के हाथों में
काँच के खिलौने
किस्मत क़िस्मत के दरवाजे दरवाज़े
खोल रहे बौने
कागज काग़ज़ ने फैलाई शतरंजी साजिश साज़िश
बारूदी ढेरों पर
सुलगायी सुलगाई माचिस   सतरंगी सपने हैं टाट की के बिछौने  
शहरों के जंगल का
निष्प्रभ है सूरज
सड़को सडकों पर घूम रहा
बौराया धीरज
 
मुखिया की चौखट के
आचरण घिनौने
 
मौसम के चेहरे पर
ठुकी हुयी हुई कीलें वासन्ती झोंको झोकों पर
मँडराती चीलें
 
व्याकुल हैं आँचल के
दुधमँुहे दुधमुँहे दिठौने  
बन्दर के हाथों में
काँच के खिलौने
</poem>
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